SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युद्ध में महाराजा छत्रसाल विजयी हुये। उन्हें खोया हुआ राज्य मिल गया। तब उन्होंने अपने दिये हुये वचन के अनुसार तालाब के चारों ओर घाट बनवाया व भगवान आदिनाथ के भव्य जिनालय का जीर्णोद्वार भी कराया। इसी के बाद सं. 1757 को पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का भव्य आयोजन भी कराया गया; इस समारोह में महाराजा छत्रसाल स्वयं पधारे। इस अवसर पर उन्होंने क्षेत्र को सोनेचांदी के छत्र, चमर, वर्तन, आदि भेंट किये व मंदिर में दो मन का पीतल का घंटा टंगवाया था। इस संबंध में यहां एक शिलालेख भी उत्कीर्ण कराया था। वर्तमान में किये गये अनुसंधानों के फलस्वरूप श्री श्रीधर अतिम अनुबद्ध केवली इसी क्षेत्र से मोक्ष गये थे। उनके चरण कमल भी यहां स्थापित हैं। अतः अब यह सिद्धक्षेत्र व अतिशय क्षेत्र दोनों के रूप में विख्यात है। क्षेत्र वंदना- कुंडलपुर तीर्थ-क्षेत्र पर लगभग 60 जिनालय हैं। इनमें से 40 जिनालय पर्वत पर व 20 जिनालय पर्वत की तलहटी में स्थित हैं। क्षेत्र की वंदना प्राचीन धर्मशाला के दायीं ओर बने दरवाजे के बाहर पहुँच कर तीर्थ यात्री बायीं ओर मुड़कर कुंडलाकार पर्वत की तलहटी में स्थित जिनालयों से प्रारंभ करते हैं। 1. चन्द्रप्रभु जिनालय- इस प्रथम जिनालय में आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभु की लगभग 1.25 फीट ऊँची श्वेत वर्ण की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा सं. 1889 में हुई थी। यह जिनालय तलहटी में तालाब के किनारे स्थित है। 2. नेमिनाथ जिनालय- यह प्रथम जिनालय के लगभग 200 गज दूर पर्वत की तलहटी में ही स्थित हैं। इस जिनालय में भगवान नेमिनाथ की लगभग 1 फीट ऊँची श्वेत वर्ण प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा सं. 1901 में प्रतिष्ठित हुई थी। 3. इस जिनालय के आगे एक जगह प्राचीन चरण-चिह्न एक देवालय में स्थापित है। .. 4. इसके बाद पश्चात् श्रद्धालु पर्वत पर स्थित जिनालयों की वंदना हेतु पर्वत पर साढ़ियों के माध्यम से चढ़ता है। यहाँ पर्वत के ऊपर तक जाने के लिये लगभग 500 सीढ़ियाँ बनी हुईं हैं। इस मार्ग पर दो द्वार भी बने हैं। 5. ऊपर पहुँचकर यात्री बाईं ओर मुड़कर भगवान चन्द्रप्रभु के जिनालय पहुँचता है। यहाँ स्थित प्रतिमा के दर्शन कर यात्री की सारी थकान मिट जाती है। इस जिनालय में मूलनायक के रूप में सं. 1548 में प्रतिष्ठित श्वेत वर्ण की पद्मासन भगवान चन्द्रप्रभु की प्रतिमा विराजमान है। इसकी अवगाहना लगभग 3 फीट है। 6. इस जिनालय में अजितनाथ, चन्द्रप्रभु आदि तीर्थंकरों की प्रतिमायें विराजमान हैं। मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 103
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy