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कुंडलपुर कुंडलपुर का नाम सुनते ही सहज ही अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की जन्मस्थली की याद आ जाती है। किन्तु मध्यप्रदेश स्थित यह कुंडलपुर एक महत्वपूर्ण तीर्थ-क्षेत्र है। जो बड़े बाबा भगवान आदिनाथ को समर्पित हैं। यह तीर्थ-क्षेत्र शहरी भीड़ भाड़ व शोर-शराबे से दूर सुरम्य पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य मध्यप्रदेश के दमोह जिले की पटेरा तहसील मुख्यालय से मात्र 2 किलोमीटर दूरी पर प्राकृतिक वातावरण के मध्य शान्त आध्यात्मिक वातावरण में स्थित है। यह तीर्थ-क्षेत्र दमोह जिले की हटा तहसील से मात्र 20 किलोमीटर, दमोह जिला मुख्यालय से मात्र 32 किलोमीटर दूर पक्के सड़क मार्ग पर स्थित है। यहां तीर्थयात्रियों के लिये ठहरने को सभी आधुनिकतम सुविधायें उपलब्ध हैं। कटनी से सगौनी होकर भी कुंडलपुर पहुँचा जा सकता है।
यह तीर्थ-क्षेत्र एक पर्वत व उसकी तलहटी में स्थित है। चूंकि ये पर्वत कुण्डलाकार है और पूर्व में भ. महावीर की जन्मस्थली माना जाता है। इसीलिये इसका नाम कुंडलपुर रखा गया। क्षेत्र के बीचों बीच तलहटी में वर्धमान सागर नाम का एक सुंदर तालाब है। इस जलाशय के तीन ओर पर्वत व एक ओर जिनालय होने से यह अत्यन्त मनोहारी लगता है। इस तीर्थ-क्षेत्र पर संतों, मुनियों व आर्यिकाओं के लिये निवास की पृथक व सुंदर व्यवस्था है।
यह सिद्धक्षेत्र होने के साथ-साथ एक अतिशय क्षेत्र भी है; यहाँ विराजमान बड़े बाबा के अतिशय चमत्कारों के संबंध में अनेक जनुश्रुतियां प्रचलित हैं। ऐसा सुना जाता है कि एक बार मुगल बादशाह ने बड़े बाबा की मूर्ति खंडित करने के लिए हाथ पर हथौड़े से प्रहार किया तो अंगूठे से दूध की धार बहने लगी। उसी समय उसकी सेना पर मधुमक्खिओं ने आक्रमण कर दिया, जिससे सेना सहित मुगल बादशाह घबराकर यहाँ से भाग खड़ा हुआ।
यहाँ अनेक बार केशर वर्षा भी होती रही है। रात्रि के शान्त वातावरण में जिनालयों से गीत संगीत की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ती है। यहाँ आकर लोगों की मनोकामनायें भी पूर्ण होती हैं। इन सबके कारण इसे अतिशय क्षेत्र की मान्यता मिली हुई है। ___एक बार महाराजा छत्रसाल मुगल बादशाह से हारने के बाद यहाँ से गुजर रहे थे; तभी यहाँ निवासरत ब्रह्मचारी नेमिसागर ने नरेश से क्षेत्र के जीर्णोद्धार के लिये सहायता हेतु निवेदन किया। तब महाराजा छत्रसाल ने वचन दिया कि यदि उन्हें उनका खोया हुआ राज्य पुनः वापिस मिल जायेगा; तो वे राजकोष से जीर्णोद्धार करा देंगे। उन्होंने बड़ी भक्ति से क्षेत्र के दर्शन किये व चले गये। कुछ समय पश्चात् महाराजा छत्रसाल का मुगल सेना से फिर आमना-सामना हो गया। इस
102 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ