SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में और राजावली कोष्टक में किया है, जिसे पं० ओझा प्रभृति इतिहासज्ञों ने स्वीकार किया है । अतः यह चर्चा इसी के मध्यवर्ती काल में ही हुई होगी। प्रसिद्ध इतिहासविद अगरचन्द नाहटा के अनुसार यह चर्चा संवत २०६६ के लगभग हुई थी ।' यद्यपि श्री नाहटा का यह संवतोल्लेख सही हो सकता है किन्तु उन्होंने यह उल्लेख किस आधार पर किया है, कोई संकेत नहीं दिया । महोपाध्याय विनयसागर के उल्लेखानुसार खरतरगच्छ का उद्भवकाल १०७४ है । सोहन राज भंसाली भी इसी मत के समर्थक हैं । यह संवत-भेद होना स्वाभाविक है । खरतर विरुद का समय सं० १०८० प्रचलित होने का यही कारण होना चाहिये कि जिनेश्वरसूरि एवं बुद्धिसागरसूरि के ग्रन्थ इसी संवत के मिलते हैं। यह कथन वैसा ही है, जैसा कि आचार्य भद्रबाहु वीरात् १७० में हुए कहना । 'वृद्धाचार्य प्रबन्धावली' में 'जिनेश्वरसूरि प्रबन्ध' लिखते हुए खरतरगच्छ की उत्पत्ति एवं शास्त्रार्थ - विजय का काल बताया गया है। उसके अनुसार "दस सय चवीसे बच्छरे ते आयरिया मच्छरिणो हारिया । ४२ उक्त 'दस सय चडवीसे' को 'दस सौ चौवीस' की संख्या आंकी गई है। जबकि यह संशोधनीय है । इसका फलन ऐसा होना चाहिये १०×१००+४x२० = १०८०. अस्तु ! संवत को लेकर मतभेद भले ही हो । किन्तु इतना निश्चित है कि खरतर विरुद प्राप्ति या खरतरगच्छ की उत्पत्ति १ खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड, खरतरगच्छ का श्रमण-समुदाय, पृष्ठ ६ खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली, पृष्ठ ६० २ P ओसवाल वंश, पृष्ठ ३५ ७३
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy