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________________ यह सुनकर वहां उपस्थित विवेकवान् जैन संघ की आचार्य के प्रति बड़ी श्रद्धा उत्पन्न हुई। शास्त्रार्थ-विचार के समय वर्द्ध मानसूरि ने कहा कि हमारी ओर से पण्डित जिनेश्वरसूरि उत्तर प्रत्युत्तर करेंगे और ये जो कहेंगे, वह हमें मान्य होगा। यह सुनकर सभी ने कहा कि यह उचित है। इसके बाद पूर्व पक्ष ग्रहण करते हुए सूराचार्य ने कहा-जो मुनि वसति में निवास करते हैं, वे प्रायः षडदर्शन से बाहर हैं। षड्दर्शनों में श्रवणक जटी आदि का समावेश है, किन्तु ये लोग इनमें से कोई भी नहीं है। अपने तथ्य की प्रामाणिक पुष्टि के लिए उन्होंने नूतन “वादस्थल” नामक ग्रन्थ प्रस्तुत किया। जिनेश्वरसूरि ने "मावी का अतीत की तरह उपचार होता है -इस न्याय का अवलम्बन लेकर कहा, नृपेन्द्र दुर्लभराज! आपके राज्य में पूर्व पुरुषों द्वारा निर्धारित नीति चलती है या वर्तमान पुरुषों द्वारा निर्मापित नवीन नीति ? राजा ने कहा-"पूर्व पुरुषों की बनाई हुई नीति ही हमारे देश में प्रचलित है, नवीन राजनीति नहीं। तदनंतर जिनेश्वरसूरि ने कहा-महाराज! हमारे जैन मत में भी इसी तरह ही पूर्वकालीन गणधर और चतुर्दश पूर्वधर आदि द्वारा निर्दिष्ट मार्ग ही प्रमाण स्वरूप माना जाता है, दूसरा नहीं। राजन् ! हम लोग बहुत दूर देश से आये हैं, अतः हमारे पूर्वाचार्यों द्वारा रचित सिद्धान्त-ग्रन्थ हम अपने साथ नहीं लाये हैं। इसलिए इन चैत्यवासी आचार्यों के मठों से हमारे पूर्वाचार्यों द्वारा विरचित सिद्धान्त ग्रन्थों को मंगवा दीजिये, ताकि उनके आधार पर मार्गअमार्ग सत्य-असत्य का निर्णय किया जा सके। तब राजा ने उन चैत्यवासी यतियों को सम्बोधित करके कहा-ये वसतिवासी मुनि ठोक कहते हैं। पुस्तकें लाने के लिए मैं अपने राजकीय कर्मचारी पुरुषों को भेजता हूँ। आप अपने यहाँ सन्देश भेज दें, जिससे उन्हें वे पुस्पके सौंप दी जायें। चैत्यवासी यति यह जान गए थे कि हमारा
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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