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________________ उपाध्याय जिनपाल के उल्लेखानुसार शास्त्रार्थ के समय चैत्यवासी परम्परा के चौरासी आचार्य उपस्थित थे, जिनकी अध्यक्षता सूराचार्य ने की। __सूराचार्य व्याकरण, न्याय के विशेषज्ञ एवं शास्त्रार्थ-निपुण थे। उन्होंने राजा भोज की सभा में वाद-विजय कर ख्याति अर्जित की थी। गुर्जर-नरेश भीम भी उनसे प्रभावित हुआ। ये अणहिल्लपुर में ही जन्मे, दीक्षित हुए। एक प्रभावशाली आचार्य होते हुए भी शास्त्रीय मर्यादाओं को विशृंखलित कर बैठे और शास्त्रीय आचारमूलक चर्चा में उन्हें पराजित होना पड़ा। प्रभावक चरितकार के अनुसार सूराचार्य ने अपने जीवन की सांध्य-वेला में अनशन संलेखना वृत्त स्वीकार किया था। प्रभावक चरित्र में सूराचार्य का परिचय 'सूराचार्यप्रबन्ध' नाम से २५६ पद्यों में प्रस्तुत है। जिनेश्वर एवं सूर के मध्य जो शास्त्रार्थ हुआ, उसका उपाध्याय जिनपाल ने इस प्रकार वर्णन किया है_आचार्य वर्द्धमानसूरि एवं जिनेश्वरसूरि (अन्य प्रमाणों के अनुसार आचार्य जिनेश्वरसूरि और आचार्य बुद्धिसागरसूरि ) राजसमा में शास्त्रार्थ करने के लिए पहुंचे। यहां उन्होंने राजा द्वारा निवेदित स्थान पर प्रमार्जन करके आसन ग्रहण किया। राजा चैत्यवासियों की तरह उन्हें भी सम्मानार्थ ताम्बूल (पान) भेंट करने लगे। यह देखकर जिनेश्वरसूरि ने कहा राजन् ! साधु पुरुषों को ताम्बूल का सेवन अनुचित है । क्योंकि शास्त्रों में कहा है ब्रह्मचारियतीनां च विधवानां च योषिताम् । ताम्बूल भक्षणं विप्रा ! गोमांसन्न विशिष्यते ॥ अर्थात् ब्रह्मचारी, यति एवं विधवाओं को ताम्बूल भक्षण करना गोमांस के समान है। १ युगप्रधानाचार्य गुर्वावली, पृष्ठ ३ --
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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