________________
आंखों देखा हाल लिखा है। उन्होंने उस युग में छाये शिथिलाचार पर करारा प्रहार किया है । यथा:
"ये कुसाधु चैत्यों और मठों में रहते हैं, पूजा करने का आरम्भसमारम्भ करते हैं, देवद्रव्य का उपयोग करते हैं, जिन मंदिरों और शालाओं का निर्माण करवाते हैं। रंग-बिरंगे सुगंधित धूपवासित वस्त्र पहनते हैं, स्वच्छन्दी वृषभ के समान स्त्रियों के आगे गाते हैं और भिन्न-भिन्न प्रकार के उपकरण रखते हैं। जल, फल, फूल इत्यादि सचित्त जीवनयुक्त वस्तुओं का उपभोग करते हैं, दो-दो, तीन-तीन बार भोजन करते हैं और पान, लवंग आदि भी खाते हैं । ... ये मुहूर्त निकालते हैं, निमित्त बतलाते हैं, आहार के लिए खुशामद करते हैं और पूछने पर भी सत्य धर्म नहीं बतलाते । ...स्वयं परिभ्रष्ट होते हुए भी दूसरों से आलोचना और प्रतिक्रमण करवाते हैं । स्नान, तेल-मर्दन, श्रृंगार और इत्र का उपयोग करते हैं। अपने शिथिलाचारी मृतक गुरुओं की अन्त्येष्टि-भूमि पर स्तूप बनवाते हैं । अकेली स्त्रियों के समक्ष व्याख्यान देते हैं और स्त्रियां उनके गुणों के गीत गाती हैं ।
1
... वेश्यागमन, क्रय-विक्रय और प्रवचन के बहाने विकथा किया करते हैं, शिष्य बनाने के लिए नन्हें-नन्हें बालकों को खरीद कर भोले लोगों को ठगते हैं। जिन प्रतिमाओं तक को भी वे खरीदते और बेचते हैं । उच्चाटन करते हैं तथा वैद्यक, यन्त्र, मंत्र, गंडा, ताबीज इत्यादि में कुशल होते हैं ।· · · ये सुविहित साधुओं के पास श्रावकों को जाने से रोकते हैं, अभिशाप आदि का भय दिखाते हैं, परस्पर विरोध रखते हैं और शिष्यों के लिए एक-दूसरे से लड़ पड़ते हैं ।" "
चैत्यवास का यह अंकन आठवीं शदी का है । आचार्य हरिभद्रसूरि के उक्त अभिवचनों से ज्ञात होता है कि उस समय चैत्यवास एवं शिथिलाचार विस्तृत प्रमाण में था । स्वयं हरिभद्रसूरि तो इस शिथिला
१ सम्बोध प्रकरण |
५६