SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूर्तियों को प्रतिष्ठित एवं प्रसारित करने का श्रेय खरतरगच्छ को ही है । खरतरगच्छ भले ही एक परम्परा हो, किन्तु इसमें हुए दादा गुरुदेवों के प्रति निष्ठा प्रत्येक जैन के मन में है । आज भारत में दादा गुरुदेवों के दस लाख से भी ज्यादा भक्त हैं । खरतरगच्छ में केबल धर्माचार्य ही नहीं पैदा हुए, वरन् बड़े-बड़े दानवीर भी जन्मे हैं । कर्म चन्द बच्छावत जैसे प्रबुद्ध महामन्त्री और मोतीशाह सेठ जैसे महादानवीर इसी गच्छ के समर्थक थे । खरतरगच्छ साध्वी-समाज के विकास के लिए भी उदार दृष्टिकोण' रखता है । भारत पुरुष-प्रधान देश है, किन्तु खरतरगच्छ ने कभी भी नारी जाति अथवा साध्वी समाज के साथ उपेक्षामूलक व्यवहार नहीं किया । यद्यपि पुरुष के समकक्ष स्थान देने का साहस यह गच्छ न जुटा पाया, किन्तु अन्य गच्छों की अपेक्षा खरतरगच्छ अधिक उदार रहा । समग्र श्वेताम्बर जैन मूर्तिपूजक परम्परा में खरतरगच्छ ने ही सबसे पहले साध्वी को प्रवचन देने का अधिकार दिया । परवर्ती काल में दूसरे गच्छों ने भी इस क्रान्तिकारी चरण का अनुमोदन एवं अनुसरण किया । खरतरगच्छ का साध्वी समाज शिक्षण एवं प्रशिक्षण काफी बढ़ाचढ़ा है । इसने गच्छ के धर्मरथ को प्राणपण से खींचा है । निश्चय ही गच्छ को साध्वी-समाज ने काफी बल दिया । 'ज्ञानक्रियाभ्याम् मोक्षः' खरतरगच्छ का प्रथम नारा है। ज्ञान की अवहेलना तथा चारित्र की उपेक्षा ही एक सन्मार्ग को नष्ट करने के उपाय हैं । खरतरगच्छ इस दृष्टि से अपने अभ्युदय काल से हीं जागरूक रहा है । एक समन्वय के प्रति यह गच्छ सदा से निष्ठावान् रहा है । साम्प्रदायिक औदार्य इस गच्छ की अन्यतम विशेषता है । भावनात्मक ४५.
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy