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________________ ___ उक्त सन्दर्भ से खरतरगच्छ की साम्प्रदायिक सहिष्णुता उजागर हो जाती है। साम्प्रदायिक कट्टरता का विष इस गच्छ की धमनियों में प्रवाहित नहीं है । इस सन्दर्भ में यह सदा-से जागरूक रहा है। (१०) अन्य विशेषताएँ ___ जैन धर्मसंघ को खरतरगच्छ की देन बहु आयामी है । जहाँ उसने सम्यग् दर्शन, ज्ञान और चारित्र समन्वित साधना के द्वारा अपने अन्तर-व्यक्तित्व को निखारा, तो वहीं विश्वहित के लिए भिन्न-भिन्न नैतिक मापदण्डों को अपनाया। खरतरगच्छ ने शासन-हित एवं मानव जाति के अभ्युदय के लिए जो-जो कार्य किये, उनमें से कतिपय बिन्दुओं पर हमने चर्चा की है। इनके अतिरिक्त भी सामाजिक, 'धार्मिक तथा राष्ट्रीय मंच पर खरतरगच्छ का अनुदान कथनीय है। भगवान् महावीर के शासन के उन्नयन हेतु तो खरतरगच्छ समग्ररूप से समर्पित है। खरतरगच्छाचार्यों की पावन निश्रा में हजारों जिन-प्रतिमाओं की प्रतिष्ठाएं हुई हैं। भारत के विभिन्न जैन तीर्थों की चतुर्विध संघीय पद-यात्राएँ हुई हैं। जैन तीर्थों की समुचित च्यवस्था के लिए श्री आनन्द जी कल्याण जी पेढी जैसी राष्ट्रीय प्रबन्ध समितियां इस गच्छ ने ही स्थापित की हैं। प्राचीन हस्तलिखित धर्मशास्त्रों का सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थालय 'जैसलमेर ज्ञानभण्डार' की संस्थापना भी खरतरगच्छ द्वारा ही हुई है। जैनों के प्रमुख तीर्थों में नाकोड़ा तीर्थ एक है। इसकी स्थापना भी खरतरगच्छ द्वारा ही हुई है। तीर्थराज सम्मेतशिखर, पावापुरी, क्षत्रियकुंड, चम्पापुरी, राणकपुर आदि तीर्थों में भी खरतरगच्छ का ही प्रभुत्व था, और है भी। महातीर्थ शत्रुजय पर भी एक समय में खरतरगच्छ का सर्वाधिक प्रभाव था। वहां निर्मित 'खरतरवसही की टुंक' इसी गच्छ की देन है। तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ तो सर्वत्र पूजनीय हैं, किन्तु गुरुओं की ५५
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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