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________________ से पहले होती है, जबकि खरतरगच्छवाले कहते हैं, 'इरियावही' सामायिक-पाठ ग्रहण करने के बाद होती है। अचलगच्छवाले मुँहपत्ति (मुखवस्त्रिका ) के बारे में अन्य दृष्टिकोण रखते हैं, लौकागच्छवाले जिनप्रतिमा-पूजन का विरोध करते हैं, तो हुँबड़ (दिगम्बर) स्त्री-मुक्ति को नहीं मानते हैं। समयसुन्दर का कथन है कि इनमें से कोई भी यदि केवली के समीप जाएगा तो उसका संशय दूर हो जाएगा और यथार्थ स्थिति जान जाएगा। खरतर, तपा. आंचलिया, पार्श्व चन्द्र, आगमिया, पूनमिया, दिगम्बर, लुंका आदि चौरासी गच्छों के भी अनेक प्रकार हैं। अहंकारवश ये सभी अपने-अपने गच्छ की स्थापना करने के लिए प्रयत्नशील हैं, किन्तु खरतरगच्छ इन आग्रहों के परे सत्य का दर्शन करते हैं। उसका कथन है कि भगवान् ने जो कह दिया है, उसी को कहा करो तथा उसी की स्थापना करने का प्रयत्न करो। यह गच्छ केवल दूसरों को ही उदार बनाने के लिए नहीं कहता, अपितु अपने अनुयायियों को भी सावधान करता है। समयसुन्दर ने लिखा है कि यद्यपि हमारा गच्छ सबसे बड़ा है और व्याख्यान में सबसे अधिक इसी गच्छ में उपस्थिति होती है, किन्तु इस बात का कभी भी गर्व मत करना। समय का खेल बड़ा विचित्र है। समयसमय पर हानि भी होती है। कौन जानता है कि कौन-सा गच्छ. प्रमाणभूत एवं जीवित रहेगा? गच्छनायकों के सम्बन्ध में वे लिखते हैं कि पूर्ववर्ती गच्छनायक अति महान् , क्षमाशील और गम्भीर हुआ करते थे, परन्तु सम्प्रतिकालीन गच्छनायक स्वेच्छानुसार आचरण करते हैं और यदि कोई उन्हें कुछ कहता है, तो वे उस पर कोई ध्यान नहीं देते । वस्तुतः उन पर कोई हटक नहीं है। उनके अनुसार वे गच्छनायक तर्कस में थोथे तीर के समान हैं और रात-दिन खिन्न रहते हैं।' १ प्रस्ताव-सवैया छत्तीसी (६, ७, ११, १२-१४) ४३
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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