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करना खरतरगच्छ के अनुसार अनुचित है। इसके अनुसार तो हम ही सच्चे ; दूसरे सब झूठे हैं-यह कहना छोड़ देना चाहिये। सत्य तो वही है, जो वीतराग देव-कथित है।'
खरतरगच्छीय एक प्रमुख तत्त्व चिन्तक महोपाध्याय समयसुन्दर के विचार यहां उल्लेखनीय है । उनके विचार इस बात को स्पष्ट कर देंगे कि खरतरगच्छ एक सम्प्रदाय-विशेष होते हुए भी कितना उदार, अनाग्रही और समन्वयवादी है। समयसुन्दर कहते हैं कि इस समय चौरासी गच्छ मुख्य रूप से देखे जाते हैं, लेकिन उन सबके भिन्नभिन्न आधार हैं। सभी गच्छानुयायी अपने-अपने गच्छ को एकदूसरे से श्रेष्ठ बता रहे हैं। अब ऐसी स्थिति में व्यक्ति सोचता है कि हमें किस गच्छ की विधि करनी चाहिये। इस समय परम ज्ञानी कोई विद्यमान नहीं है, जिससे शंका का निवारण किया जा सके। अतः उनका सुझाव है कि सभी को अपने-अपने गच्छ की क्रिया करनी चाहिये। आक्षेप-प्रत्याक्षेप कभी नहीं करना चाहिये। किसी भी गच्छ के प्रति अप्रीति नहीं रखनी चाहिये । आक्षेप-प्रत्याक्षेप कभी नहीं करना चाहिये। किसी भी गच्छ के प्रति अप्रीति नहीं रखनी चाहिये।
समयसुन्दर बताते हैं कि जिनशासन में गच्छों के कारण बहुत संघर्ष हुए हैं और पता नहीं अभी तक कितने संघर्ष होंगे। सभी लोग अपने-अपने गच्छों के प्रति इतना ममत्व रखते हैं और उसे ही पकड़ कर बैठ गये हैं। यह कौन जानता है कि सत्य क्या है और असत्य क्या है ? सूत्र सिद्धान्त सबके वही हैं। इसलिए तुम परमार्थ को समझो । अपने हृदय में मंथन करके सोचो कि तुमने गच्छवाद में पड़कर कितना राग-द्वेष किया है।
तपागच्छवाले कहते हैं 'इरियावही' सामायिक-पाठ उच्चारण करने १ वीतराग-सत्यवचन गीतम्, समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ४४७ २ वीतराग सत्यवचन गीतम, समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ४४७