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________________ खरतरगच्छ के मुनियों की साम्प्रदायिक उदारता सभी गच्छों के लिए एक आदर्श है । खरतरगच्छ के बहुत से विद्वान् आचार्यों ने - अन्य गच्छों के साधुओं को विद्यादान दिया है, उनके सहयोग एवं सहकार से साहित्य का निर्माण एवं संशोधन किया है, उनके विविध शासन-प्रभावक कार्यो में अपनी सन्निधि दी है । अनेक खरतरगच्छीय मुनियों ने दिगम्बर- तीर्थों की भी यात्राएँ की हैं। अन्य गच्छीय या अन्य लिंगी साधुओं को यथोचित सम्मान देना भी इस गच्छ का प्रमुख वैशिष्ट्य है। खरतरगच्छ के विद्वान मुनियों ने अन्य धर्म के प्रन्थों पर विद्वता - पूर्ण व्याख्या - प्रन्थ लिखे हैं । खरतरगच्छीय मुनियों ने तपागच्छीय प्रतिभाओं का भी गुणगान किया है । उपाध्याय श्रीवल्लभ ने आचार्य विजयदेवसूरि के सम्बन्ध में 'विजयदेव - माहात्म्य' और महोपाध्याय समयसुन्दर ने महातपस्वी पुंजा ऋषि के सम्बन्ध में श्री पुंजा ऋषि रास लिखकर खरतरगच्छ की उदारवादिता का प्रकृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है। इतना ही नहीं, समयसुन्दर ने अपने समकालीन तपागच्छीय प्रभावक आचार्य हीरविजयसूरि की मुक्त कंठ से स्तुति भी की है । जिनहर्ष ने सत्यविजय निर्वाण रास लिखा है । इस गच्छ की मान्यता है कि हमें आग्रहवादी नहीं बनना चाहिये । - दूसरे के सत्य को अस्वीकार नहीं करना चाहिये एवं वैचारिक संघर्ष की भूमिका तैयार नहीं करनी चाहिये । 'वीतराग - सत्य वचन- गीत' में लिखा है कि जैनधर्म, जैनधर्म सभी चिल्लाते हैं, लेकिन सभी अपनेअपने मतों की ही स्थापना करते हैं, न कि जैनधर्म के सिद्धान्तों की । सभी जैनधर्म के अनुयायी हैं, लेकिन सबकी समाचारी, सबका आचरण अलग-अलग है । लोग इतने आग्रहवादी हैं कि दूसरे के सत्य को मान्य ही नहीं करते। ऐसे लोगों का कहना हैं कि हम ही केवल -सच्चे हैं, दूसरे झूठे हैं । स्वमत की प्रशंसा और दूसरों की निन्दा ४१
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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