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________________ 1 परक उपदेशों का आकलन किया गया है। जनहित के लिए उपदेश देना मुनि का धर्म है, अतः उसके साहित्य में उपदेशपरक तथ्यों की बहुलता होनी स्वाभाविक है । यों तो प्रत्येक मुनिका साहित्य किसी-नकिसी औपदेशिक उद्देश्य से समन्वित होता है । पर यहाँ हम मात्र उसी साहित्य का उल्लेख करना चाहेंगे जो विशुद्ध आद्योपान्त उपदेशपरक ही है । यथा - जिनेश्वरसूरि लिखित उपदेशकोष, जिनचन्द्रसूरि लिखित संवेगरंगशाला, जिनवल्लभसूरिलिखित धर्म शिक्षाप्रकरण जिनदत्तसूरि रचित गणधर सार्धं शतक-प्रकरण, जिनरत्नसूरि लिखित उत्तमपुरुष कुलक, राजहंसलिखित जिनवचनरत्न- कोष, अभयचन्द्र लिखित रत्नकरण्ड, पुण्यनन्दी लिखित रूपकमाला, चारित्रसिंह लिखित शील कल्पद्रुम-मंजरी, उपाध्याय लक्ष्मीवल्लभ कृत भावना-विलास, पुण्यशील लिखित ज्ञानानन्द- प्रकाश, जिनलाभसूरि लिखित आत्मप्रबोध आदि । उक्त सभी ग्रन्थ वृहत् एवं संस्कृत निबद्ध हैं । मरुगुर्जर - भाषा (प्राचीन हिन्दी भाषा) में भी औपदेशिक साहित्य की रचना हुई । यह साहित्य गीतों एवं पदों में रचित है । उपदेशपरक हजारों पद मिलेंगे । एक-एक कवि ने सैकड़ों उपदेशपरक पद एवं गीत लिखे हैं । स्वतन्त्र पदों एवं गीतों के अलावा सामूहिक रूप में भी मिलेंगे। कवियों ने उन्हें पच्चीसी, बत्तीसी, बावनी, सित्तरी, बहुत्तरी, सईकी आदि नाम दिये हैं । प्रमुख कृतियों के नाम निम्नांकित हैं लालचन्द रचित राजुल पच्चीसी, जिनसमुद्रसूरि रचित कौतुक - पच्चीसी, रघुपति रचित उपदेश - पच्चीसी, भीमराज रचित सप्तभंगीपच्चीसी आदि । जिराजसूरि रचित कर्म - बत्तीसी, गुणलाभ रचित जीभ - बत्तीसी, जयचन्द्र रचित नवकार-बत्तीसी, अमर विजय रचित अक्षर-बत्तीसी, उपदेश-बत्तीसी, पूजा-बत्तीसी, कीर्तिवर्धन रचित भ्रमर-बत्तीसी, क्षमा ३६
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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