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में इनकी टक्कर के कवि इने-गिने मिलेंगे। आचार्य कवीन्द्रसागरसूरि का भी भक्ति-साहित्य प्रतिष्ठित है।
खरतरगच्छीय भक्त कवियों ने भक्तिपरक स्वतन्त्र गीत लिखने के साथ चौबीस तीर्थंकरों का क्रमिक स्तुतिपरक साहित्य भी निबद्ध किया है। खरतरगच्छ में स्तुतिपरक साहित्य पृथक्-पृथक् रूपों में प्राप्त होता है। __ भक्तिपरक वोसी-साहित्य में जिनराजसूरि, जिनहर्ष, विनयचन्द्र, देवचन्द्र ज्ञानसार आदि कवियों की 'वीसी' उल्लेखनीय है । चौवीसीसाहित्य में जिनलाभसूरि, जिनहर्ष, आनन्दघन, देवचन्द्र आदि की चौबीसियों कथनीय हैं। क्षमाप्रमोद कृत चौवीसजिन-पंचाशिका भी द्रष्टव्य हैं।
पूजापरक-साहित्य भी सुविशाल है। खरतरगच्छ में पूजा-साहित्य की रचना करनेवालों में उपाध्याय देवचन्द्र, चारित्रनन्दी, सुमतिमण्डन, द्धिसार, जिनहरिसागरसूरि, कवीन्द्रसागरसूरि के नाम प्रमुख हैं।
मुनि प्रामानुग्राम विचरण करते है। अतः उनसे तीर्थ-यात्राएँ सहजतः हो जाती हैं। खरतरगच्छीय कवियों ने भिन्न-भिन्न तीर्थों के प्रति अपनी आस्थांजलि प्रकट करते हुए अभिनव रचनाएँ लिखी हैं। उन्होंने तीर्थों की तत्कालीन स्थिति एवं शिल्प-कला का भी लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है। जैसे-सुमतिकल्लोल कृत तीर्थमाला, गुणविनय कृत शत्रुजय चैत्य-परिपाटी, अमरसिंदूर कृत जैसलमेर पटवासंघ वर्णन, रंगसार कृत गिरनार-चैत्य-परिपाटी, दयारत्न कृत कापरहेड़ा रास आदि।
अनेक कवियों ने भक्ति के विभिन्न अंगों पर साहित्य लिखते हुए 'बारहमासे' का भी ललित वर्णन किया है। जिनहर्ष द्वारा बारह मासों का किया गया चित्रांकन सबसे सुन्दर है।
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