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लिखित कालिकाचार्य कथा, कथाकोष, द्रौपदी-संहरण, जिनराजसूरि लिखित जैन रामायण, वादी हर्षनन्दन लिखित आदिनाथ व्याख्यान, कीर्ति सुन्दर लिखित वागविलास कथा संग्रह, राजलाभ लिखित स्वप्नाधिकार, उपाध्याय क्षमाकल्याण लिखित श्रीपालचरित्र-टीका, उपाध्याय लब्धिमुनि लिखित जिनदत्तसूरि चरित, जिनचन्द्रसुरि चरित, जिनकुशलसूरि चरित आदि।
(१६) रास-चौपाई आदि काव्य-साहित्य-काव्य के रूप में खरतरगच्छीय मुनियों ने जो साहित्य हिन्दी जगत् को दिया है वह सरल, उपयोगी और युग के यथार्थ दर्पण का प्रदर्शक है । वह धार्मिक, व्यवस्थामूलक तथा नैतिक पृष्ठभूमि में प्रतिष्ठित है। भाषा, वर्णनकौशल, साहित्यक तत्त्व, विचार आदि सभी दृष्टियों से खरतरगच्छीय साहित्य भारतीय काव्य-परम्परा के गौरव को बढ़ाता है। इन काव्यों में खरतरगच्छीय साहित्यकारों ने उन व्यक्तियों को चरित्रनायक के रूप में ग्रहण किया है, जो जन-समाज के लिए आदर्शभूत हैं। इनमें कुछ चरित्र जैन आगमों एवं आगमेतर साहित्य में से प्रहण किये गये हैं तथा कुछ काल्पनिक भी हैं । रास-चौपाई आदि के निर्माण में खरतरगच्छीय मुनियों ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। खरतरगच्छीय मुनियों द्वारा लिखित सहस्राधिक रास, चौपाई आदि उपलब्ध हैं। इनमें विनयप्रभोपाध्याय द्वारा रचित गौतमस्वामी रास ने सर्वाधिक प्रसिद्धि प्राप्त की है। विक्रम की १७ वी एवं १८ वीं शती में खरतरगच्छीय साहित्यकारों ने विपुल रास चौपाई लिखे हैं। एतद् सम्बन्धित सहस्राधिक प्रन्थों में कुछेक उल्लेखनीय है. विजयतिलक कृत जम्बूस्वामी फाग, पद्म कृत शालिमह-कक्क, समयसुन्दर कृत शाम्ब-प्रद्युम्न चौपाई, चार प्रत्येकबुद्ध-रास, शत्रुजय रास, सीताराम-चौपाई, मृगावती-रास, थावञ्चा-चौपाई, नल दमदन्ती रास, भुवनकीर्ति कृत भरत-बाहुबली रास, उपाध्याय गुणविनय कृतः