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आत्मोत्थान से गहरा सम्बन्ध है। जिन महाकाव्यों एवं टीका-प्रन्थों की खरतरगच्छीय विद्वानों ने रचना की है, वे जीवन की विषाक्तता मिटाने के लिए अमृत-वर्षण हैं, शास्त्रीय शब्दार्थों को समझने के लिए एक विनम्र मार्गदर्शन है। प्रमुख ग्रन्थों के नाम निम्नलिखित हैं
उपाध्याय चन्द्रतिलक रचित अभयकुमार चरित महाकाव्य, मंत्री मंडन रचित कादम्बरी मंडन, काव्य मंडन, चम्पू मंडन, चन्द्रविजया, महोपाध्याय समयसुन्दर रचित अष्टलक्षी, धर्मचन्द्र रचित कर्पूरमंजरी षटक टीका, उपाध्याय लक्ष्मीवल्लम रचित कुमारसम्भव-टीका, जिनसमुद्रसूरि रचित तत्त्वप्रबोध-नाटक, विनयसार रचित नलवर्णनमहाकाव्य, कीर्तिरत्नसूरि विरचित नेमिनाथ-महाकाव्य, उपाध्याय लक्ष्मीतिलक रचित प्रत्येक बुद्ध-महाकाव्य, उपाध्याय श्री वल्लभ रचित विजय देव माहात्म्य महाकाव्य, विद्वद् प्रबोध काव्य, उपाध्याय जिनपाल रचित सनत्कुमार चक्री-चरित्र महाकाव्य, ललितकीर्ति रचित शिशुपालवध महाकाव्य-टीका, सन्देह-ध्वान्त-दीपिका। ___(१५) कथामूलक काव्य-साहित्य :- प्राचीन जैन साहित्य ऐतिहासिक एवं प्रेरणादायी अनुपम कथानकों से आपूरित है। जैन आगम एवं आगमेतर साहित्य ऐसे कथानकों से अभिमंडित हैं जो वर्तमान जीवन की उधेड़बुन के साथ भी अपना सम्बन्ध रखते हैं। खरतरगच्छ की विद्वद् परम्परा ने अपनी-सशक्त लेखनी के द्वारा उस कथा-साहित्य को प्रभावक सम्प्रेषणीयता के साथ प्रस्तुत किया है। शताधिक प्राप्त कथामूलक काव्य प्रन्थों में से कुछेक ग्रन्थों के नाम उल्लेखनीय हैं-वर्धमानसूरि लिखित उपमिति भव प्रपंचकथा, देवभद्र सूरि लिखित कथारत्न कोष, सोमतिलकसूरि लिखित कुमारपाल प्रबन्ध, संघतिलकसरि लिखित धूर्ताख्यान, जिनप्रभसूरि लिखित विविध तीर्थकल्प, उपाध्याय जयसागर लिखित पृथ्वीचन्द्र चरित्र, उपाध्याय मेरु सुन्दर लिखित अंजनासुन्दरी-कथा, महोपाध्याय समयसुन्दर
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