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थे। उन्होंने धर्म-निरपेक्ष विद्वत्भोग्य साहित्य का निर्माण किया था। उनकी संगीत से सम्बन्धित एक कृति प्राप्त हुई हैसङ्गीत-मण्डन । खरतरगच्छ का संगीत से सम्बन्धित अन्य कोई साहित्य अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। __ (१०) वास्तु-मुद्रा-रत्न-धातु-साहित्य :-एतद्-सम्बन्धित ठक्कुरफेरू की पांच रचनाएँ प्राप्त हुई हैं वास्तुसार प्रकरण, द्रव्य परीक्षा, धातुत्पत्ति, भूगर्भप्रकाश, और रत्नपरीक्षा। खरतरगच्छ की ये पांचों कृतियां काफी महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं। ___ (११) मंत्र-साहित्य :-मंत्र साधनामूलक जीवन का एक अंग है। ध्यान, साधना अथवा जप करने वाला प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी मंत्र को अपनी साधना का अंग अवश्य बनाता है। खरतरगच्छ में अनेक मंत्र-सिद्ध-पुरुष हुए हैं। खरतरगच्छाचार्यों द्वारा समय-समय पर अनेक चामत्कारिक घटनाएँ हुई। वस्तुतः उन घटनाओं की पृष्ठ भूमि में उनके मन्त्र बल का ही प्राधान्य है। खरतर गच्छ की परम्परा में विविध विद्वानों ने मन्त्र-सम्बद्ध साहित्य का सृजन किया है। उनमें से कतिपय प्रतिष्ठित प्रन्थ इस प्रकार हैं-पूर्णकलश छत महाविद्या, जिनप्रभसूरि रचित सूरिमन्त्रकल्प, संघतिलकसूरि रचित वर्धमान विद्या कल्प।
(१२) आयुर्वेद साहित्य :-आयुर्वेद औषधि-विज्ञान है। खरतरगच्छीय यति मुनियों ने इसे स्वास्थ्य-प्रदायक एवं समाज हितकारी कार्य समझा । यद्यपि यह कार्य समाज के लिए कल्याणकारी है, किन्तु मुनि धर्म की मर्यादाओं के अनुकूल नहीं है। इसीलिए चारुचन्द्रसूरि रचित वातशितम को छोड़कर एक भी खरतरगच्छीय आयुर्वेदीय ग्रन्थ १८ वीं शती से पूर्व का नहीं है। १८वीं शती अथवा उसके पश्चात लिखित अधिकांश आयुर्वेदीय प्रन्थ यतिवर्ग द्वारा लिखित है, अथवा यतिवर्ग से प्रभावित हैं। इन ग्रन्थों में प्रमुख हैं-चारुचन्द्र सूरि