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मान्य विधि-विधानों को मुनियों ने साहित्य में निबद्ध किया है । इस गच्छ ने अपनी मूल मान्यताओं पर अडिग रहते हुए देशकालानुरूप विधि-विधान परिवर्तन भी स्वीकार किया है । इस उपशीर्षक के अन्तर्गत हम खरतरगच्छ के कतिपय महत्वपूर्ण वैधानिक प्रन्थों के नाम प्रस्तुत करेंगे। इस सन्दर्भ में उन ग्रन्थों को भी सम्मिलित कर रहें हैं जिनमें शास्त्रीय सिद्धान्त की गहनतम विवेचना की गई है । ये प्रन्थ मुख्यतः प्रश्नोत्तर - परम्परा का निर्वाह करते हैं। इनमें मुख्यतः शिष्य द्वारा प्रस्तुत की गई जिज्ञासाओं का निवारण एवं समाधान है । एतद् सम्बन्धित शताधिक प्रन्थ प्राप्त हो चुके हैं । उनमें सर्वाधिक प्रन्थ महोपाध्याय समयसुन्दर एवं चिदानन्द के प्राप्त हुए हैं । कतिपय महत्वपूर्ण ग्रन्थों के नाम इस प्रकार है - वर्धमानसूरि का आचारदिनकर, जिनप्रभसूरि रचित विधि - मार्ग प्रपा, उपाध्याय गुणविनय कृत कुमतिमत- खंडन, महोपाध्याय समयसुन्दर कृत विचार - शतक, विशेष- शतक, विशेष-संग्रह, विसंवाद- शतक, समाचारी - शतक, उपाध्याय देवचन्द्र कृत विचाररत्न-सार, जिनमणिसागरसूरि कृत मुंहपति - निर्णय, पयुर्षण निर्णय, बालचन्द्रसूरि कृत निर्णय प्रभाकर चिदानन्द कृत आत्मभ्रमोच्छेदन- भानु, कुमतकुलिंगोच्छेदन - भास्कर, जिनाज्ञा विधिप्रकाश, आदि ।
(४) योग एवं ध्यानपरक साहित्य : - इस सन्दर्भ में खरतर - गच्छाचार्यों का विस्तृत साहित्य अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। जो प्राप्त हुआ है, उसमें उपाध्याय मेरुसुन्दर कृत योगप्रकाश - बालावबोध, योगशास्त्र बालावबोध, उपाध्याय शिवनिधान कृत योगशास्त्र स्तवक, और सुगनचन्द्र कृत ध्यानशतक बालावबोध के नाम कथनीय हैं ।
(५) दर्शन एवं न्याय - साहित्य :- खरतरगच्छ में अनेक तत्वचिन्तक, दार्शनिक एवं न्यायपरक प्रतिभा के धनी महापुरुष हुए हैं । दर्शन एवं न्याय के दुरूह से दुरूह विषयों को खरतरगच्छाचार्यों ने
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