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सूत्रार्थटीका आदि । कल्पसूत्र पर खरतरगच्छीय विद्वान मुनियों ने तीस से अधिक व्याख्या-ग्रन्थ निबद्ध किये हैं, जिनमें महोपाध्याय समयसुन्दर कृत कल्पलता नामक टीका उल्लेखनीय है। समयसुन्दर कृत दशवैकालिक टीका भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।
(२) सैद्धान्तिक-प्रकरण :-खरतरगच्छीय विद्वानों ने आगमिक व्याख्या ग्रन्थों के अतिरिक्त सैद्धान्तिक एवं दार्शनिक ग्रन्थों की भी रचना की है। उन्होंने एतद्विषयक ग्रन्थों की व्याख्याएँ भी प्रस्तुत की हैं और स्वतन्त्र रूप से भी लिखा है। सैद्धान्तिक प्रन्थकारों में आचार्य अभयदेवसूरि, जिनदत्तसुरि, जिनवल्लभसूरि, जिनप्रभसूरि, गणि रामदेव, महोपाध्याय समयसुन्दर, उपाध्याय देवचन्द्र, उपाध्याय क्षमा कल्याण, चिन्दानन्द आदि प्रमुख हैं।
सैद्धान्तिक प्रकरण-प्रन्थों में जैन धर्म सम्मत मान्यताओं का ऊहापोह किया गया है। खरतरगच्छ ने लगभग दो सौ महत्त्वपूर्ण सैद्धान्तिक प्रकरण ग्रन्थ लिखे हैं, जिनमें से निम्न प्रन्थ उल्लेखनीय हैं-जिनवल्लभसूरि कृत सूक्ष्मार्थ विचारसारोद्धार और आगमिक वस्तु विचारसार, उपाध्याय कमलसंयम कृत सिद्धान्तसारोद्धार, गणि प्रबोधचन्द्र कृत, सन्देहदोलावलि वृहद्वृत्ति, जिनभद्रसूरि कृत द्वादशांगी प्रमाण कुलक, नयकुंजर कृत प्रवचन-विचारसार, महोपाध्याय समयसुन्दर कृत गाथा-सहस्री, उपाध्याय देवचन्द्र कृत विचारसार स्तवक, नयचक्रसार, द्रव्यप्रकाश, अध्यात्म-प्रबोध, उपाध्याय क्षमाकल्याण कृत परसमयसारसंग्रह, उपाध्याय शिवचन्द्र कृत सिद्धिसप्ततिका आदि।
(३) वैधानिक एवं सैद्धान्तिक प्रश्नोत्तरमूलक साहित्य : जैन 'धर्म में विभिन्न गच्छों एवं समुदायों में भेद मुख्यतः विधि-विधान सापेक्ष है। प्रत्येक गच्छ की धार्मिक क्रिया एवं विधि-विधान दूसरे गच्छ से कुछ भिन्नता लिये रहते हैं। खरतरगच्छ की परम्परा में
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