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का अनूठा प्रभाव था। सत्यपुर/साचोर के राणा हरिपालदेव, आशोटा के राजा रुद्रनन्दन, धूजद्री के राजा उदयसिंह, त्रिशृङ्गम के अधिपति राजा रामदेव आचार्य के व्यक्तित्व से शतशः प्रभावित थे।
दिल्लीपति गयासुद्दीन बादशाह ने दादा जिनकुशलसूरि से धर्मबोध प्राप्त किया था। सुप्रसिद्ध महामन्त्री वस्तुपाल भी जिनकुशलसूरि के प्रति श्रद्धावनत थे।
बादशाह अकबर चतुर्थ दादा आचार्य जिनचन्द्रसुरि का परम भक्त था। अकबर ने आचार्य की बहुमुखी प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें 'युगप्रधान' पद प्रदान कर एक महान् राष्ट्र सन्त के रूप में स्वीकार किया। मुगल सम्राटों पर जैन धर्म में यदि किसी गच्छ विशेष का प्रभाव रहा, तो उनमें खरतरगच्छ का नाम प्रमुख एवं प्रथम है। अकबर जैसे समर्थ बादशाह को अपने चरणों में झुकाना और अमारि-घोषणा जैसी अहिंसामूलक आज्ञाओं को देश में प्रचारित करवाना खरतरगच्छ की प्रमुख विशेषता है।
अपने पिता की तरह जहाँगीर भी खरतरगच्छाचार्यों की विद्वता एवं प्रतिभा से प्रभावित था। बादशाह जहाँगीर की साधु-विहारप्रतिबन्धजन्य आज्ञा को मिटाने में भी जिनचन्द्रसूरि के प्रयास सफल रहे । (६) जैनसंघ का व्यापक विस्तार
जैनीकरण खरतरगच्छ की अभूतपूर्व देन है । खरतरगच्छ ने जैनसंख्या में जितना विस्तार किया, उतना आज तक किसी अन्य गच्छ या शाखा द्वारा नहीं हुआ। खरतरगच्छ में हुए आचार्यों में से एक-एक आचार्य के द्वारा हजारों-हजारों नये जैन बनाये गये। आचार्य जिनबल्लमसूरि ने एक लाख नये जैन बनाये। जैनीकरण का विश्व कीतिमान स्थापित किया आचार्य जिनदत्तसूरि ने। आचार्य का जैन संघ