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छाया के पुण्य-प्रभाव से ही यह गच्छ अनगिनत बाधाओं को चीरता हुआ जैन समाज में अपना गौरवपूर्ण स्थान बनाये हुए है।
खरतरगच्छ में हुए चार दादागुरुदेवों की यौगिक शक्तियां एवं उनके चमत्कार तो प्रसिद्ध ही हैं। सैकड़ों चमत्कार उनसे जुड़े हुए हैं। उन्हें प्रत्यक्ष प्रभावी मानकर प्रत्येक जैन उनके प्रति श्रद्धान्वित है। खरतरगच्छ के सर्वाधिक प्रभावशाली आचार्य जिनदत्तसूरि तो मन्त्रविद्या में अत्यन्त निष्णात थे। खरतरगच्छ के ही एक महान् योगीराज आनन्दघन के यौगिक चमत्कार भी प्रसिद्ध हैं। अध्यात्म योगी श्रीमद् देवचंद्र, ज्ञानसार, चिदानंद, ज्ञानानंद और सहजानन्दघन (भद्रमुनि) भी अच्छे योगी थे । नामोल्लेख कितने लोगों का किया जा सकता है। खरतरगच्छ तो योग-साधना का रत्नाकर है। अन्धों को आँखें देना, गूगों को वाणी देना, अमावस्या को पूर्णिमा में बदल देना, ऐसे-ऐसे कितने ही चमत्कार हैं जो खरतरगच्छाचार्यों की यौगिक प्रतिभा के ज्वलन्त उदाहरण हैं। (५) नरेशों को प्रतिबोध
खरतरगच्छ की यह प्रमुख विशेषता है कि वह आम जनसमुदाय के साथ-साथ राज्याधिपति नरेशों से भी सम्बद्ध रहा। प्रत्येक खरतरगच्छाचार्य ने अपने समसामयिक नरेशों को प्रतिबोध दिया और उन पर अपना प्रभुत्व जमाकर शासन के हित में काम करवाये। ___ आचार्य जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि के चरित्र एवं ज्ञान से पाटण-नरेश दुर्लभराज अत्यन्त प्रभावित था। इन युगलबन्धुओं का राजा पर प्रभाव होने के कारण ही सुविहितमार्गी मुनियों का पाटण एवं सारे गुजरात में आवागमन शुरू हुआ।
आचार्य जिनवल्लभसूरि का धारानरेश नरवर्म पर विशेष प्रभाव था। नरवर्म ने आचार्य के निर्देश से चित्तौड़ के दो जैन मन्दिरों में दो लाख रुपये खर्च करके पूजन मण्डपिकाएँ बनाई।