SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३) शास्त्रार्थ - कौशल भारत में शास्त्रार्थ की परम्परा काफी प्राचीन है । भगवान् महावीर के लगभग हजार वर्ष बाद शास्त्रार्थ का जाल - सा भारत में छा गया था । जैन आचार्य और साधु लोग गाँव-गाँव विचरण करते थे, अपने धर्म की नीतियाँ सिखलाते थे । उनसे उन लोगों का भी सामना होता, जो अन्य मान्यताओं का समर्थन करते थे। सभी अपने - अपने शास्त्रों की बातें करते, अतः शास्त्रार्थ होने स्वाभाविक थे । खरतरगच्छ का तो आविर्भाव ही शास्त्रार्थं मूलक परिवेश में हुआ था। आचार्य जिनेश्वरसूरि एवं बुद्धिसागरसूरि इन दोनों युगल बन्धुओं ने चैत्यबासी आचार्यों को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा और विजय प्राप्त की । पद्मचन्द्राचार्य जैसे उद्भट विद्वानों को परास्त करने का श्रेय खरतरगच्छ को ही है । खरतरगच्छ की परम्परा में हुए आचार्यों, मुनियों और विद्वानों ने अनेकशः शास्त्रार्थ किये । Sant प्रातिभ मनीषा ने दिग्गज विद्वानों को शास्त्रार्थ में परास्त कर जैन धर्म की प्रभावना में बढ़ोतरी की। अमेय मेधा के धनी आचार्य जिनपतिसूरि का नाम यहाँ विशेष उल्लेख्य है, जिन्होंने अपने जीवन में छतीस बार शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त कर धर्म - प्रभावना में चार चाँद लगाए । (४) यौगिक शक्ति प्रयोग खरतरगच्छ के श्रमणसंघ में अनेकानेक योग-प्रतिभाएँ प्रकट हुईं। खरतरगच्छाचार्यों का साधनामय जीवन बड़ा ओजस्वी रहा । अनगिनत कष्टों, बाधाओं और विघ्नों के बीच भी वे अविचल रहे । खरतरगच्छीय इतिहास उन महापुरुषों के सद् विचार, सदाचार, त्याग, योग, वैराग्य के अनेकानेक घटनाक्रमों से भरा है। उन्होंने अपनी यौगिक शक्तियों का उपयोग करके शासन-रक्षा एवं शासन - प्रभावना में आशातीत अभिवृद्धि की । उन अमृत पुरुषों के वरद हस्त की छत्र १६
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy