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मानवगण से निम्न चार शाखाएँ प्रकट हुई -(१) काश्यवर्जिका, (२) गौतमीया (गोमाजिका), (३) वाशिष्ठीया, (४) सौराष्ट्रिका । इस गण के कुलों के नाम इस प्रकार हैं-(१) ऋषिगोत्रक, (२) ऋषिदत्तिक और (३) अभिजयन्त।
कोटिकगण से चार शाखाएँ और चार कुल निःसृत हुए। शाखाओं के नाम-(१) उच्चनागरिका, (२) विद्याधरी, (३) वत्री और (४) ममिका। कुलों के नाम-(१) ब्रह्मलिप्तक, (२) वत्सलिप्तक, (३) वाणिज्य और (४) प्रश्नवाहक ।
उपर्युक्त भेदोपभेद सैद्धान्तिक मतभेदों को लेकर नहीं हुआ था, अपितु संघीय व्यवस्था को समुचित रूप से चलाने के लिए हुआ था। विवेच्य खरतरगच्छ उक्त भेदोपभेदों में से कोटिक-गण की वन-शाखा से सम्बद्ध है।
उपर्युक्त सभी गणों, शाखाओं, कुलों का काफी महिमापूर्ण इतिहास रहा होगा। धर्म-संघ पर इनका अनुपम प्रभुत्व एवं वर्चस्व भी रहा होगा। इनमें से कतिपय गण, कुल, शाखा तो ऐतिहासिक दृष्टि से. अपना गरिमापूर्ण स्थान रखते है। खरतरगच्छ का प्रवर्तन : एक पूर्व भूमिका ___ कोई धर्म सदा एक-सा बना रहे, यह कम सम्भव है। प्रत्येक धर्म में हास और विकास हुआ है, क्षीणता और व्यापकता आई है। जन धर्म ने भी कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। धर्म-संघ के समय-समय पर हुए विच्छेदों ने उसकी एकरूपता तथा एकसूत्रता को क्षति पहुँचायी है। विभिन्न प्रकार के गण, कुल, शाखा, गच्छ, समुदाय एक-से-एक निःसृत होते हुए भी भगवान महावीर के पथ से च्युत नहीं हुए। और जिन क्षणों में धर्म-संघ पथच्युत होने लगा, उसी समय खरतरगच्छ ने प्रकट होकर धर्मरथ की बागडोर थाम ली।
जैन धर्म के लिए यह बात सुप्रसिद्ध है कि यह एक आचार-प्रधान