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और शाखाओं पर जो प्रकाश डाला गया है, वह ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
गण नौ हैं । वे इस प्रकार हैं-(१) गोदासगण, (२) उत्तर-बलिस्सह गण, (३) उद्देहगण, (४) चारण-गण, (५) उडुपाटित गण, (६) वेशपाटिक गण, (७) कामर्द्धि गण, (८) मानव-गण और (E) कोटिक-गण।
गोदासगण की चार शाखाएँ इस प्रकार हैं-(१) ताम्रलिप्तिका, (२) कोटिवर्षीया, (३) पौण्ड्रवर्द्धनिका, और (४) दासीकर्पटिका।
उत्तरबलिस्सह गण की चार शाखाएँ इस प्रकार हैं(१) कौशाम्बिका, (२) सौमित्रिका, (३) कोटुम्बिनी और (४) चन्दनागरी।
उद्देहगण से चार शाखाएँ निकलीं-(१) औदुम्बरिया, (२) मासपूरिका, (३) मति पत्रिका, (४) सुवर्णपत्रिका। इस गण से छह कुल जनमे–(१) नागभूत, (२) सोमभूतिक, (३) आद्रकच्छ, (४) हस्तलीय, (५) नान्दिक और (६) पारिहासिक । - चारण गण से निम्न चार शाखाएँ पनपी-(१) हारित-माला गारिक, (२) संकाशिका, (३) गवेधुका, (४) वन नागरी। इस गण से निम्न सात कुल निकले-(१) वत्सलीय, (२) प्रीतिधर्मक, (३) हारिद्रक, (४) पुष्पमित्रक, (५) माल्यक, (६) आर्य चेटक और (७) कृष्ण सखा।
उडुवाडिय गण (भूतुवाटिक गण) से चार शाखाएँ निकली(१) चम्पार्जिका, (२) भद्राणिका, (३) काकन्दिका और (४) मेखलाजिंका। इससे निम्नलिखित तीन कुल जनमे-(१) भद्रयशिक (२) भद्रगौप्तिक और (३) यशोभद्रीय । __ वेषवाटिक गण से चार शाखाएं और चार कुल निकले। शाखाएँ हैं-(१) श्रावस्तिका, (२) राजपालिका, (३) अन्तरंजिका और (४) क्षेमलीया। कुल हैं-(१) गणिक, (२) मेघिक, (३) कामद्धिक और (४) इन्द्रपुरक।