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________________ जीवन-वृत्ति :- श्रेष्ठि अभयचन्द्र का जन्म समय अज्ञात है । इनके पिता का नाम श्रेष्ठि भुवनपाल था और वे प्रह्लादनपुर निवासी थे। इन्होंने सं० १३२६ में आचार्य जिनेश्वरसूरि "द्वितीय" के सन्निधान में शत्रुंजय उज्जयन्त आदि विविध तीर्थों की यात्रार्थ एक चतुर्विध महासंघ निकाला, जिसमें श्रेष्ठि ने लाखों रुपये व्यय किये । प्रतिष्ठा, दीक्षा आदि समारोहों में भी इनका अर्थ सहयोग रहा। श्रेष्ठ अभयचन्द्र के सम्बन्ध में अन्य कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है, किन्तु पट्टावलियों में इनकी गुण-गाथा मुक्त कण्ठ से गायी है de सुमेरौ निमेरेरपि सपदि जग्मे तरुघरे, घुगव्या दिव्यन्ते सलिलनियौ चिन्तामणि गणेः । कलौकालेवीक्ष्या नवधिमभितो याचकगणम न तस्थौ केनडिप स्थिरमभथचन्द्रस्तु विजयी । धैर्य ते स विलोकताम भय' यः शैलेन्द्र धैयत्मिना गाम्भीयं स तवेक्षतां जलनिधेर्गाम्भीर्य मिच्छरच यः । भक्तिं देवगुरौ स पश्यतु तब श्री श्रेणिकं य स्तुते, यात्रां तीर्थपतेः स चेत्तु भवतो यः साम्प्रती झीप्सति । समय- संकेत :- श्रेष्ठि अभयचन्द्र का समय तेरहवीं शदी का उत्तरार्ध एवं चौदहवीं शादी का पूर्वार्ध है । उपसंहार : - पूर्ववर्ती पृष्ठों में खरतरगच्छ के आदिकालीन इतिहास के अनुशीलनात्मक अध्ययन के उपरान्त निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि खरतरगच्छ जैन धर्म की विशुद्ध मान्यताओं को प्रस्थापित एवं प्रसारित करने वाला एक जागरूक आम्नाय है । विक्रम की ग्यारहवीं शदी में क्रान्तिकारी परिवेश में विकसित इस गच्छ ने १ युगप्रधानाचार्य गुवर्वालि २४०
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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