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लेखन, मन्दिर निर्माण / जीर्णोद्धार आदि धार्मिक कार्यों एवं अनुष्ठानों में अच्छी अर्थ - राशि व्यय की थी ।
साहित्य :- श्रावक - रत्न नेमिचन्द्र भाण्डागारिक विद्वान व्यक्ति थे । साहित्य-लेखन के प्रति इनकी रूचि थी । इनके साहित्य में साहित्यिक तत्वों की ऊँचाइयाँ भी देखने को मिलती है ।
उनका एक ग्रन्थ " षष्टी सतक" विशेष उल्लेखनीय है । इस ग्रन्थ पर लगभग १२ व्याख्या - ग्रन्थ मिलते हैं। अगरचन्द नाहटा का अभिमत है कि श्वेताम्बर समाज में किसी श्रावक द्वारा रचित किसी भी ग्रन्थ की इतनी अधिक टीकाएँ नहीं हुई । इस ग्रन्थ की मान्यता श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में है। उक्त ग्रन्थ के अतिरिक्त भांडागारिक की जिनवल्लभसूरि गुणवर्णन (पद्य ३५) और पार्श्वनाथ स्तोत्र (पद्य) ये रचनाएँ मिली है ।
'जिनरत्न कोश' के अनुसार नेमिचन्द्र ने सं० १२१६ में 'धर्मनाथ चरित्र' एवं सं० १२१३ में 'अनन्तनाथ चरित्र' ग्रन्थ लिखे थे ।
समय- संकेत : - नेमिचन्द्र भाण्डागारिक का समय तेरहवीं शदी है। शासन-प्रभावक आचार्य जिनेश्वरसूरि (द्वितीय)
खरतरगच्छ के प्रारम्भिककाल में जिनेश्वरसूरि नाम से दो आचार्य हुए है, जिनमें प्रथम ग्यारहवीं शदी में हुए थे और द्वितीय तेरहवीं शदी में । तेरहवीं शदी में हुए जिनेश्वरसूरि 'द्वितीय' के नाम से सम्बोधित किये गये हैं ।
आचार्य जिनेश्वरसूरि 'द्वितीय' एक महान् शासन प्रभावक आचार्य हुए। इनके कर कमलों से जिन प्रतिमाओं की विपुल प्रतिष्ठाएँ हुई, मुमुक्षुओं की दीक्षाएँ हुई ।
१ कुशल निर्देश, अंक ४, १६८१ ।
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