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विवेचन किया है ।' निश्चयतः यह एक उत्तम कोटि का महाकाव्य है । इसमें चक्रवर्ती सनत्कुमार का चरित्र अत्यन्त सुन्दर ढंग से पेश किया गया है । २४ सर्गों के इस महाकाव्य में रसप्रद घटनाओं का बाहुल्य, उनका समुचित विकास तथा पात्रों का आकर्षण इसे नाटक जैसा रूप दे देता है । और आनन्द भी नाटक पढ़ने जैसा ही आता । यह काव्य साहित्यिक तत्त्वों के दृष्टिकोण से भी एक उत्कृष्ट कोटि का महाकाव्य है ।
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समय संकेत : - महामनीषी उपाध्याय जिनपाल का जन्म समय अज्ञात है । उनका दीक्षा - समय सं० १२२५ एवं स्वर्गारोहण समय १३११ है | अतः ये तेरहवीं-चौदहवीं शदी के विद्वान सिद्ध होते हैं । श्रावक-रत्न नेमिचन्द्र भाण्डागारिक
मेमिचन्द्र भाण्डागारिक एक प्रबुद्ध श्रावक थे । वे खरतरगच्छ की आचार संहिता के प्रति निष्ठावान् थे । वे एक दानवीर तथा साहित्यसेवी व्यक्ति थे ।
जीवन-वृत्त :- नेमिचन्द्र का गोत्र भाण्डागारिक था । इनका जन्म - काल अनुपलब्ध है ।
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खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावलीकार के मतानुसार ये मारवाड़ में मारोठ में रहते थे । ये आचार्य जिनपतिसूरि के भक्त थे और इन्होंने उनसे सम्यक्त्वमूल बारहव्रत ग्रहण किया था । ये विवाहित थे । उनकी पत्नी का नाम लखमिणि था । इनके पुत्र का नाम आंबड़ / अम्बड़ था, जिसने जिनपतिसूरि से दीक्षावरण की थी । यह अम्बर गणि वीरप्रभ/ आचार्य जिनेश्वरसूरि द्वितीय के नाम से वर्णित है ।
नेमिचन्द्र दान धर्म के प्रति अभिरुचिशील थे । इन्होंने शास्त्र१ द्रष्टव्य : तेरहवीं - चौदहवीं शताब्दी के जैन संस्कृत महाकाव्य, पृष्ठ २२२-२४६ ।....
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