________________
उपर्युक्त ग्रन्थों में 'खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली' एवं ' सनत्कुमार चरित' " महाकाव्य विशेष महत्वपूर्ण हैं । 'खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली' ४००० श्लोक - प्रमाण है। इसमें खरतरगच्छ - परम्परा में ११वीं से १४वीं सदी में हुए आचार्यों के कतृत्व का विस्तृत चरित वर्णित है । डॉ० गुलाबचन्द चौधरी के शब्दों में गुरु परम्परा का इतना विस्तृत और विश्वस्त चरित वर्णन करनेवाला ऐसा कोई और ग्रन्थ अभी तक ज्ञात नहीं हुआ। इसमें प्रत्येक आचार्य का जीवन चरित्र बड़े विस्तार से दिया गया है । किस आचार्य ने कब दीक्षा ली, कब आचार्य पदवी प्राप्त की, किस-किस प्रदेश में विहार किया, कहाँ-कहाँ चातुर्मास किये, किस-किस जगह कैसा धर्मप्रचार किया, कितने शिष्य - शिष्याएँ दीक्षित किये, कहाँ पर किस विद्वान् के साथ शास्त्रार्थ या वाद-विवाद किया, किस राजा की सभा में कैसा सम्मान आदि प्राप्त किया, इत्यादि अनेक आवश्यक बातों का इस ग्रन्थ में बड़ी विशद रीति से वर्णन किया गया है। गुजरात, मेवाड़, मारवाड़, सिंध, बागड़, पंजाब और बिहार आदि अनेक देशों, अनेक गाँवों में रहनेवाले सैकड़ों धार्मिक और धनिक श्रावक-श्राविकाओं के कुटुम्बों का और व्यक्तियों का नामोल्लेख मिलता है, साथ ही उन्होंने कहाँ पर कैसे पूजा - 5 - प्रतिष्ठा एवं संघोत्सव आदि धर्म कार्य किये, इसका निश्चित विधान मिलता है । ऐतिहासिक दृष्टि से यह ग्रन्थ अपने ढंग की एक अनोखी कृति है । इसमें राजस्थान के अनेक राजवंशों से सम्बद्ध इतिहास - सामग्री, राजकीय हलचलें एवं उपद्रव तथा भौगोलिक बातें दी गई हैं । "
' सनत्कुमार चरित' पर डॉ० श्यामशंकर दीक्षित ने शोध दृष्टि से
सिन्धी जैन ग्रन्थमाला, सिन्धी जैन शास्त्र शिक्षापीठ, बम्बई, सन् १९५६ २ जिनरत्न कोश, पृष्ठ ४१२
३ जिनरत्न कोश, पृष्ठ १०१
जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग-६, पृष्ठ ४५२-५३
४
२२४