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________________ उपाध्याय पदारूढ़ किया। सं० १२७३ में बृहद्वार नगरकटीय राजा पृथ्वीचन्द्र की राजसभा में काश्मीरी पण्डित मनोदानन्द के साथ जिनपाल ने शास्त्रार्थ किया। शास्त्रार्थ का विषय था जैनदर्शन घडदर्शन से बाह्य है या नहीं। इस शास्त्रार्थ में पण्डित मनोदानन्द बुरी तरह पराजित हुए। पृथ्वीचन्द्र ने जिनपाल को विजयपत्र प्रदान किया था। इस शास्त्रार्थ का उल्लेख स्वयं जिनपाल ने युगप्रधानाचार्य गुर्वावली में सविस्तार किया है।' 'अभयकुमारचरित' महाकाव्य के रचयिता गणि चन्द्रतिलक को जिनपाल ने ही अध्ययन करवाया था।२ इनका स्वर्गवास सं० १३११ में हुआ था। साहित्य-लेखन :-उपाध्याय जिनपाल ने साहित्य-संसार को अनेक ग्रन्थ-रत्न प्रदान किये। अभी तक इनके निम्न ग्रन्थ मिल सके हैं१. षट्स्थानक वृत्ति, रचनाकाल सं० १२६२ २. सनत्कुमार चक्रि चरित, रचना-काल सं०१२६२ से १२७८ के बीच ३. उपदेशरसायन-विवरण, रचना-काल सं० १२६२ ४. द्वादशकुलक-विवरण, रचना-काल सं० १२६३ ५. पञ्चलिंगी विवरण-टिप्पण (सं० १२६३) ६. धर्म शिक्षा-विवरण, रचनाकाल सं० १२६३ ७. चर्चरी-विवरण, रचनाकाल सं १२९४ (अप्राप्त) ८. स्वप्नफलविवरण ६. स्वप्नविचारमाष्यवृत्ति १०. युगप्रधानाचार्य गुर्वावली, रचनाकाल १३०५, दिल्ली ११. जिनपतिसूरि पंचाशिका १२. संक्षिप्त पौषधविधि प्रकरण १ द्रष्टव्य : खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली, पृष्ठ ४४-५० २ अभयकुमार चरित, प्रशस्ति, श्लोक-३०-४० २२३
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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