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१. वादस्थल, लेखक आचार्य प्रद्युम्न २. प्रबोधोदयवादस्थन, लेखक आचार्य जिनपतिसूरि
इस शास्त्रार्थ-विजय के उपलक्ष में भाण्डाशालिक (भणशाली) संभव, वैद्य सहदेव, ठाकुर हरिपाल, श्रेष्ठि क्षेमन्धर, वाहित्रिक उद्धरण, श्रेष्ठि सोमदेव इत्यादि श्रावकों की ओर से एक विजयोत्सव मनाया गया।
संघ वहां से चलकर अणहिल पाटन पहुँचा। वहाँ पर जिनपतिसूरि ने अपने गच्छ के चालीस आचार्यों को अपने मंडल में मिलाकर वस्त्र आदि प्रदानकर उनका सम्मान किया। ___ इसके बाद जिनपतिसूरि संघ के साथ लवणखेटक नामक नगर में गये। वहां पर गणि पूर्ण देव, गणि मानचन्द्र, गणि गुणभद्र आदि को वाचनाचार्य की पदवी दी। इसके बाद पुष्करिणी नाम की नगरी में जाकर सं० १२४५ के फाल्गुन मास में धर्मदेव, कुलचन्द्र, सहदेव, सोमप्रम, सूरप्रम, कीर्तिचन्द्र, श्रीप्रभ, सिद्धसेन, रामदेव और चन्द्रप्रभ, तथा संयमश्री, शान्तिमति, रत्नमति को दीक्षा दी। सं० १२४६ में श्री पत्तन में भगवान महावीर की प्रतिमा की स्थापना की। सं० १२४७ और १२४८ में लवणखेड़ा में रहने की सूचना मिलती है। इसी वर्ष मुनि जिनहित को उपाध्याय पद दिया । सं० १२४६ में पुनः पुष्करिणी आकर मलयचन्द्र को दीक्षा दी। सं० १२५० में विक्रमपुर में आकर साधु पद्मप्रभ को आचार्य पद दिया और सर्वदेवसूरि नाम से उनका नाम परिवर्तन किया। सं० १२५१ में आपकी निश्रा में माण्डव्यपुर में श्रेष्ठि लक्ष्मीधर का अभिनन्दन हुआ
और श्रेष्ठि को माल्यार्पण किया गया। __ वहाँ से अजमेर के लिए विहार किया। अजमेर में मुसलमानों के उपद्रव के कारण दो मास बड़े कष्ट से बिताये। तदनन्तर पाटण आये और पाटण से भीमपल्ली आकर चातुर्मास किया। कुहियप
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