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ग्राम में गणि जिनपाल को वाचनाचार्य पद दिया । लवणखेड़ा में राजा कल्हण की ओर से विशेष आग्रह होने के कारण "दक्षिणावर्त्त आरात्रिकावतारण” उत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया ।
सं० १२५२ में आपने पाटण आकर विनयानन्द को दीक्षित किया। सं० १२५३ में प्रसिद्ध श्रावक भण्डारी नेमिचन्द्र को प्रतिबोध किया । इसके बाद मुसलमानों द्वारा पाटण नगर का विध्वंश होने पर जिनपतिसूरि ने घाटी ग्राम में चातुर्मास किया। सं० १२५४ में आपश्री ने धारानगरी में जाकर प्रभु शान्तिनाथ मन्दिर में विधि मार्ग को प्रचलित किया । अपने तर्क सम्बन्धी परिष्कारों से महावीर Satta दिगम्बर को प्रभावित किया और वहीं पर रत्नश्री को दीक्षित किया। आगे चलकर यही साध्वी प्रवर्तिनी पदारूढ़ हुई ।
तत्पश्चात् जिनपतिसूरि ने नागद्रह नामक ग्राम में वर्षावास किया । सं० १२५६ की चैत्र कृष्ण पंचमी को लवणखेट में नेमिचन्द्र, देवचन्द्र, धर्मकीर्ति और देवेन्द्र नामधेयक पुरुषों को दीक्षा देकर व्रती बनाया। सं० १२५८ की चैत्र कृष्णा ५ को शान्तिनाथ देव के विशाल विधि मन्दिर की प्रतिष्ठा की और विधिपूर्वक मूर्त्ति स्थापना तथा शिखर - प्रतिष्ठा भी की गई। वहाँ पर चैत्र कृष्णा २ के दिन वीरप्रभ तथा देवकीर्त्ति नामक दो श्रावकों को साधु बनाया । सं० १२६० आषाढ़ कृष्णा ६ के दिवस वीरप्रभ और देवकीर्त्ति को बड़ी दीक्षा दी गई और उनके साथ ही सुमति एवं पूर्णभद्र को चारित्रमार्गारूढ़ किया गया तथा आनन्दभी नाम की आर्या को " महत्तरा " का पद दिया ।
तदनन्तर जैसलमेर के जिन मन्दिर में फाल्गुण शुक्ला द्वितीया को पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा की स्थापना की । स्थापना- उत्सव श्रेष्ठि जगद्धर ने बड़े विस्तार के साथ किया । सं० १२६३ फाल्गुन कृष्णा चतुर्थी को लवणखेड़ा में महामन्त्री कुलधर कारित महावीर
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