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________________ को दीक्षा देकर संयमी बनाया। संवत् १२३२ में पुनः विक्रमपुर आकर फाल्गुन सुदि को भांडागारिक गुणचंद्रगणिस्मारक स्तूप की प्रतिष्ठा की। इसी वर्ष में जिन मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाने के लिए जिनपतिसूरि फिर आशिका नगरी में आये । उनका नगर-प्रवेश बड़े समारोह के साथ किया गया। नगर-प्रवेश का वर्णन खरतरगच्छ वृहद गुर्वावली में सविस्तार हुआ है। प्राप्त उल्लेखानुसार जिनपतिसूरि के साथ उस समय ८० मुनि थे। ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया के दिन पार्श्वनाथ स्वामी के मन्दिर के शिखर पर स्वर्ण ध्वज कलश आरोपित किया गया। उसी अवसर पर जिनपतिसूरि ने धर्म सागर और धर्ममचि को साधु व्रती बनाया। कन्यानयन के विधि चैत्यालय में आपने आषाढ़ माह में विक्रमपुर वासी साह मानदेवकारित श्रीमहावीर भगवान की प्रतिमा स्थापित की। इसी वर्ष व्याघ्रपुर में पार्श्वदेव को दीक्षा दी। सं० १२३८ में आपने फलवद्धिका (फलौदी) के विधिचैत्य में पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा स्थापित की। और गणि जिनमत को उपाध्याय पद और गुणश्री नामक साध्वी को महतरा का पद दिया। वहीं पर सर्वदेव और जयदेवी को दीक्षा दी गई। सं० १२३५ में जिनपतिसूरि का चातुर्मास अजमेर में हुआ। वहाँ पर उन्होंने जिनदत्तसूरि के प्राचीन स्तूप का जीर्णोद्धार कराकर विशाल रूप दिलवाया। इसके अलावा देवप्रम और उसकी माता चरणमति को दीक्षा दी। अजमेर में ही सं० १२३६ में श्रेष्ठि पासट निर्मापित भगवान् महावीर-मूर्ति की स्थापना की और अम्बिका शिखर की प्रतिष्ठा करवाई। वहां से जाकर सागरपाड़े में भी अम्बिका शिखर की स्थापना की। ___ सं० १२३७ में वे बब्बेरक प्राम में जिनरथ को वाचनाचार्य का पद देकर सं० १२३७ में आशिका में आये और दो मन्दिरों एवं दो बड़ी जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की। २१४
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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