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गृहस्थों को प्रतिबोध देकर श्रमणधर्म में दीक्षित किया। तत्पश्चात् सं० १२२४ में विक्रमपुर में गुणधर, गुणशील, पूर्णरथ, पूर्णसागर, वीरचन्द्र और वीरदेव को क्रम से तीन नन्दियों की स्थापना करके दीक्षा दी। और मुनि जिनप्रिय को उपाध्याय पद प्रदान किया। ___ सं० १२२५ में जिनपतिसरि उच्चानगरी में आये जहां उन्होंने धर्मसागर, धर्मचन्द्र, धर्मपाल, धर्मशील, धनशील, धर्ममित्र और इनके साथ धर्मशील की माता को भी दीक्षित किया तथा मुनि जिनहित को वाचानाचार्य का पद दिया। वहां से मरुकोट आये, मरुकोट में विनयसागर और शीलसागर की बहिन अजितश्री को संयम व्रत दिया ।
सं० १२२८ में जिनपतिसूरि सागरपाड़ा पहुँचे । वहाँ पर सेनापति अम्बड़ तथा दुसाझ गोत्रीय श्रेष्ठि साढल द्वारा बनाये हुए अजितनाथ स्वामी तथा शान्तिनाथ स्वामी के मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवाई। इसी वर्ष बब्बेरक ग्राम आशिका नगरी में भी विहार करने के उल्लेख मिलते हैं। . ___ आचार्य जिनपतिसूरि आशिका के नृपति भीमसिंह एवं श्रावकसंघ के अनुरोध पर आशिका पधारे । नगर प्रवेशोत्सव में स्वयं राजा भी सम्मिलित हुआ। आशिका में दिगम्बराचार्य महाप्रामाणिक के साथ आपका शास्त्रार्थ हुआ और इन्होंने शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त की। जिनपतिसूरि का यह प्रथम वाद-विजय था। फाल्गुन शुक्ला तृतीया के दिन जिन मन्दिर में पार्श्वनाथ प्रतिमा की स्थापना करके वे सागरपाट पधारे और वहाँ देवकुलिका की प्रतिष्ठा की।
वहां से सं० १२२६ में वे धनपानी पहुंचे, जहां उन्होंने संभवनाथ स्वामी की प्रतिमा की स्थापना और शिखर की प्रतिष्ठा की। सागरपाट में इन्होंने पंडितमणिभद्र के पट्ट पर विनयभद्र को वाचनाचार्य का पद दिया। सं० १२३० में विक्रमपुर से विहार करके स्थिरदेव, यशोधर, श्रीचंद्र और अभयमति, जयमति, आशमति, श्रीदेवी आदि
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