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________________ हो जाना वैशिष्ट्यपूर्ण है।' प्राप्त प्रमाणों से विदित होता है कि जिनपतिसूरि एक प्रतिभावान्, व्यक्तित्व सम्पन्न और उद्भट विद्वान आचार्य थे। इनकी प्रसिद्धि षट्त्रिंशत वाद विजेता' के रूप में आख्यायित है। उन्होंने शाकंभरी नरेश पृथ्वीराज के दरबार में जयपत्र प्राप्त किया था। जीवन-वृत्त :-'श्री जिनपतिसूरि पंचाशिका' कृति के अनुसार जिनपतिसूरि का जन्म सं० १२१० चैत्र कृष्णा ८, मूल नक्षत्र में विक्रमपुर निवासी यशोवर्धनमालू की पत्नी सूहवदेवी (एक पट्टावली में जसमई नामोल्लेख भी हुआ है) की रत्नकुक्षि से हुआ था । उनका नाम नरपति था। सं० १२१६, फाल्गुण कृष्ण १० को जिनचन्द्रसूरि के कर-कमलों से दीक्षा ग्रहण की। जबकि 'खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली' में इनका दीक्षा-काल सं० १२१७, फाल्गुन शुक्ला १० निर्दिष्ट है। इस गुर्वावली के अनुसार इनका दीक्षानाम नरपति था । ___ इसी पट्टावली में सूचित है कि सं० १२२३, कार्तिक शुक्ल १३ को उत्सवपूर्वक आचार्य जयदेवसूरि ने नरपति को आचार्य पदवी प्रदानकर निनचन्द्रसूरि का पट्टधर घोषित किया और इनका जिनपतिमूरि नव नामकरण हुआ। आचार्य-पदोत्सव का व्ययभार मानदेव ने वहन किया, जो जिनपतिसूरि के चाचा थे। जिनपतिसूरि ने सं० १२२३ में पद्मचन्द्र और पूर्णचन्द्र नामक दो । सो वि बारवरिसवइठिो पट्टे ठाविओ। -वृद्धाचार्य प्रबन्धावली, (६) २ पामीउ जेत्र छतीस विवादिहि, जयसिंह पहविय परषदइ । -शाह रायण कृत श्री जिनपतिसूरि धवल गीतम् (१२) ३ बार त्रेवीसए नयरि बन्बेरए, कातिय सुदी दिन तेरसीए। श्रीजिणचन्द्रसरि पाटे संठाविउ, श्रीजयदेवसूरि आयरीए। गुरुय नामेण जिनपतिसूरि उदयड, चन्द्र कुलम्बर चन्दलउए -शाह रयण कृत श्री जिनपतिसरि धवल गीतम् (६-१०) २१२
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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