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________________ गढ़ के राठोड़ आस्थान के पुत्र धांधल, तत्पुत्र रामदेव के पुत्र काजल ने आचार्य जिनचन्द्रसूरि से सं० १२१५ में स्वर्ण सिद्धि की वास्तविकता प्रत्यक्षतः बतलाने का साग्रह निवेदन किया। जिनचन्द्र ने उसे लक्ष्मीमन्त्र से अभिमन्त्रित वासक्षेप दिया और कहा-इसे तुम जिस पर डालोगे वह सोने का हो जाएगा। काजल ने वासक्षेप को घर के छन्नों पर डाला। आश्चर्य । छज्जे स्वर्णमय हो गए। काजल छज्जों के स्वर्णमय हो जाने से प्रभावित होने के कारण आचार्य के प्रति एकनिष्ठ हुआ। और इस प्रकार आचार्य ने छाजेहड़ गोत्र की स्थापना की। सं० १२१५ में जिनचन्द्र ने सालमसिंह दइया को प्रतिबोध दिया। सियालकोट में वोहरगत करने से सालेचा वोहरा गोत्र प्रसिद्ध हुआ । श्रीमाल गोत्र का पुनरुद्धार एवं पुनर्स्थापन भी जिनचन्द्रसूरि के करकमलों से ही हुआ था। साहित्य :-मणिधारी जिनचन्द्रसूरि एक समर्थ विद्वान थे। उन्होंने शास्त्रीय ग्रन्थों का गम्भीरता से अध्ययन किया था, किन्तु उन्होंने कोई विस्तृत साहित्य-सर्जन किया हो, ऐसा उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। अब तक 'व्यवस्था-शिक्षा-कुलक' नामक एक मात्र कृति उपलब्ध हो पाई है। समय संकेत:-द्वितीय दादा जिनचन्द्रसूरि का जन्म वि० सं० -११६७, दीक्षा सं० १२०३, आचार्यपद सं० १२११ और स्वर्गवास सं० १२२३ में हुआ था। इस प्रकार के बारहवी-तेरहवीं शदी के आचार्य प्रमाणित होते हैं। महावादजयी आचार्य जिनपतिसूरि आचार्य जिनचन्द्रसूरि के पट्टधर हुए आचार्य जिनपतिसूरि । इन्हें मात्र बारह अथवा चौदह वर्ष की बाल्य आयु में आचार्य जैसी सर्वोच्च उपाधि और विशाल खरतरगच्छ का गणनेतृत्व/संचालन का भार प्राप्त २११
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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