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________________ आचार्य जिनदत्तसूरि ने जिनचन्द्रसूरि को योगिनीपुर, दिल्ली नगर (दिल्ली) जाने का सर्वथा निषेध किया था। संवत् १२११ आषाढ़ शुक्ला ११ को अजमेर नगर में जिनदत्तसूरि का स्वर्गवास होने पर इन्होंने गच्छ नायक पद प्राप्त किया। संवत् १२१४ में जिनचन्द्रसूरि त्रिभुवनगिरि पधारे जहाँ जिनदत्तसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित शान्तिनाथ जिनालय के शिखर पर स्वर्ण दण्ड, कलश और ध्वजारोहण और गणिनी साध्वी हेमदेवी को इन्होंने प्रवर्तनी पद से विभूषित किया। वहाँ से मथुरा की यात्रा कर सम्वत् १२१७ के फाल्गुन शुक्ला १० के दिन पूर्णदेव जिनरथ, वीरभद्र, वीरनथ, जगहित, जयशील, जिनभद्र और नरपति को भीमपल्ली के वीर जिनालय में दीक्षा प्रदान की और श्रेष्ठि क्षेमन्धर को प्रतिबोध दिया। वहां से विहार कर मरुकोट (मरोट ) पधारे जहाँ चन्द्रप्रभस्वामी के विधिचैत्य पर साधु गोल्लक कारित स्वर्णदण्ड, कलश व ध्वजारोपण किया गया। इस महोत्सव में श्रेष्ठि क्षेमन्धर ने विशेष अर्थ व्यय किया। मरुकोट से विहार कर जिनचन्द्रसूरि सं० १२१५ में उच्चनगरी पधारे वहां ऋषभदत्त, विनयशील, गुणवर्द्धन, मानचन्द्र जगश्री, सरस्वती और गुणश्री को दीक्षा दी। संवत् १२२१ में जिनचन्द्रसूरि सागरपाड़ा पधारे। वहाँ श्री गजधर कारित पार्श्वनाथ विधि चैत्य में देवकुलिका की प्रतिष्ठा की। इसी वर्ष अजमेर में जिनदत्तसूरि स्तूप की प्रतिष्ठा की। वहाँ से विहार करते वे बब्बेरक गये, जहां उन्होंने गुणभद्र अभयचन्द्र, यशचन्द्र, यशोभद्र, देवभद्र और देवभद्र की धर्मपत्नी को प्रव्रज्या प्रदान की। आशिका (हाँसी) नगरी में उन्होंने नागदत्त को वाचनाचार्य पद दिया और महावन स्थान के अजितनाथ विधिचैत्य की प्रतिष्ठा की। इन्द्रपुर में उन्होंने शान्ति २०५
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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