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भेद को लेकर खरतरगच्छ का जन्म हुआ और विचारपरक मान्यता भेद को लेकर रुद्रपल्लीय खरतरगच्छ का। रुद्रपल्लीय परम्परा वास्तव में खरतरगच्छ की प्रथम भेद-शाखा है। __ आचार्य जिनशेखरसूरि इसी रुद्रपल्लीय शाखा के प्रवर्तक थे। एक प्रभावशाली आचार्य होने के कारण इनकी शाखा लगभग डेढ़ सौ दो सौ वर्षों तक जीवित रही, किन्तु बाद में लुप्त हो गयी।
खरतरगच्छ की मूल वृहत् शाखा एवं रुद्रपल्लीय खरतरगच्छ शाखा में किंचित तथ्यों को लेकर मतभेद भी था। दोनों परम्पराओं में शास्त्रार्थ होने का उल्लेख भी मिलता है। जिनशेखर के ही शिष्य पद्मचन्द्रसूरि का मणिधारी आचार्य जिनचन्द्रसूरि के साथ सं० १२२२ में रुद्रपल्ली नगर में "न्यायकुन्दली” पठन-प्रसंग में राजसभा में शास्त्रार्थ हुआ, जिसमें पद्मचन्द्रसूरि निरुत्तर हो गये। ऐसी घटनाओं को देखते हुए यह लगता है कि रुद्रपल्लीय शाखा यद्यपि खरतरगच्छ-वृक्ष की ही एक शाखा थी, किन्तु यह अपनी पूर्व परम्परा से कुछ भिन्न तथ्य भी प्ररूपित करती थी। वे भिन्न तथ्य कौन से हैं, इसकी सूचना अप्राप्त है। ___ समय-संकेत :-आचार्य जिनशेखर के समय की सूचना देने वाले पूरे प्रमाण नहीं हैं। वे जिनवल्लभसूरि के शिष्य थे। चूंकि जिनवल्लम का समय बारहवीं शदी है, अतः इनका समय भी बारहवीं-तेरहवीं शदो होना चाहिये। मणिधारी आचार्य जिनचन्द्रसूरि ..
जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों में जिनदत्तसूरि, मणिधारी जिनचन्द्रसूरि, जिनकुशलसूरि और जिनचन्द्रसूरि 'दादा' के नाम से । द्रष्टव्य : खरतरगच्छ वृहद् गुर्वांवली, पृष्ठ २१.
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