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जिनशासन-शिरोमणि आचार्य जिनशेखरसूरि
आचार्य जिनशेखरसूरि खरतरगच्छ की रुद्रपल्लीय शाखा के प्रथम प्रवर्तक थे। साहस और स्वाभिमान इनके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता दिखाई देती है। भले ही वैचारिक मान्यता भेद के कारण इन्होंने अपनी नयी शाखा प्रवर्तित की, किन्तु समाज पर इनके प्रभुत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
जीवन-वृत :-आचार्य जिनशेखरसूरि का जन्म रुद्रपल्ली/रुद्रोली में हुआ। इनके कौटुम्बिक जन इसी प्रदेश में रहते थे। अतः इनके इस प्रदेश में अनेक चातुर्मास हुए। ये आचार्य जिनवल्लभ के प्रमुख शिष्य एवं प्रतिष्ठित आचार्य थे। इनका विहार-क्षेत्र अधिकतर यही प्रदेश रहा। रुद्रपल्ली में इन्होंने मन्दिर प्रतिष्ठा, दीक्षा, पूजादि अनेक धर्म कार्य करवाये । ___ यद्यपि इनके द्वारा प्रतिष्ठापित मन्दिर आदि अब विलीन हो चुके हैं, तथापि प्रतिमा-लेखों से विदित होता है कि आचार्य जिनवल्लभसूरि प्रतिबोधित दूगड़ आदि अनेक गोत्रों पर इस शाखा का प्रभाव था, और पंजाब में भी जिनशेखर एवं इनके शिष्यों का विचरण हुआ था।
शिष्य-परम्परा :-आचार्य जिनशेखर के शिष्यों की संख्या कितनी थी, यह भी ज्ञात नहीं हो पाया है। किन्तु प्राप्त प्रमाणों से इतना तो स्पष्ट है कि जिनशेखर प्रवर्तित शाखा विक्रम की उन्नीसवीं शदी पर्यन्त विद्यमान रही। जिसमें खरतरगच्छ के आदिकाल में निम्न प्रमुख आचार्य हुए
१. पद्मचन्द्रसूरि २. विजयचन्द्रसूरि ३. अभयदेवसूरि ४. देवभद्रसूरि
रुद्रपल्लीय खरतर-शाखा का प्रवर्तन :-आचारपरक मान्यता
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