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________________ जिनदत्तसूरि ने अपने शिष्य-प्रशिष्यों में से जिनचन्द्र, जीवदेव, जयचन्द्र, जयसिंह को आचार्य पद, जिनशेखर, जीवानन्द को उपाध्याय पद, जिनरक्षित, शीलभद्र, स्थिरचन्द्र, ब्रह्मचन्द्र, विमलचन्द्र, वरदत्त, भुवनचन्द्र, रामचन्द्र, मणिभद्र को वाचनाचार्य - पद और श्रीमती, जिनमती, पूर्णश्री, जिनश्री, ज्ञानश्री को महत्तरा - पद पर आरूढ़ किया था। जिस आचार्य की परम्परा में एक साथ अनेक आचार्य, उपाध्याय, वाचनाचार्य, महत्तरा आदि पदधारी हों, वह परम्परा निश्चित रूप से समृद्धिशाली एवं विकसित कही जाएगी। स्वर्गवास - आचार्य जिनदत्तसूरि का स्वर्गवास ७६ वर्ष की आयु अनशन पूर्वक हुआ था । वि० स० १२११ आषाढ़ शुक्ला ११ उनकी स्वर्गारोहण तिथि है एवं अजमेर उनका स्वर्गारोहण स्थल है।' आज भी अजमेर में उनकी उपासना के लिए भव्य दादावाड़ी विद्यमान है । साहित्य- जाचार्य जिनदत्तसूरि ने साहित्य सर्जन भी किया था । यद्यपि उनका साहित्य विपुल नहीं है, किन्तु जितना भी है, वह आपके साहित्यक जीवन को उजागर करने में कम नहीं है । अगरचन्द नाहटा और भँवरलाल नाहटा का अभिमत है कि सूरि महाराज ने लोक हितार्थ बहुत से प्राकृत, अपभ्रंश और संस्कृत भाषा के ग्रन्थ बनाये । वे प्रन्थ पद्य-परिमाण में छोटे होते हुए भी अर्थ में अतिशय गम्भीर हैं। जिस प्रकार आपश्री के उपदेश एवं अन्य कार्यकलाप असाधारण प्रभावशाली थे, उसी प्रकार आपके ग्रन्थ भी बड़े ही सप्रभावी हैं । सूरिजी की रचनाओं में उनकी विद्वत्प्रतिभा और अपूर्व व्यक्तित्व स्पष्ट झलक रहा है । १ संवत बारह इग्यार समइ, अजयमेरुपुर ठाण । ग्यारस आसादसुदि, सग्गिपत्त सुह झाण || - श्री जिनदत्तसूरि स्तुति, ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृष्ठ ४ २ युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि, पृ० ५५-५६ १६८
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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