SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्मिलित हो गया और इस प्रकार पंच नदी पर पंच देवों का निवास हो गया और उनकी पूजा होने लगी । इसी प्रकार बावन बीर अभिधेयक देवगण भी आचार्य जिनदत्तसूरि के भक्त थे ऐसी सूचना प्राप्त होती है । प्रस्तुत प्रसंग में यह उल्लेखनीय है कि आचार्य जिनदत्तसूरि ने जो पंच नदी की साधना की थी उसका अन्य आचार्यों के चरित्र में भी उल्लेख मिलता है । श्री अभयजैन ग्रन्थालय में प्राप्त एक हस्तलेख के अनुसार आचार्य जिनसमुद्रसूरि तथा सम्राट अकबर प्रति बोधक आचार्य जिनचन्द्रसूरि ने भी पंच नदी की साधना की थी । 1 यह पंच नदी साधन मंत्री कर्मचन्द्र से जिनदत्तसूरि चरित्र सुनकर अकबर के आग्रह से किया गया और इसका विस्तार से वर्णन 'युग'प्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि' ग्रन्थ में देखना चाहिए । उपाध्याय क्षमाकल्याण कृत पट्टावली में वर्णित है कि एकदा आचार्य जिनदत्तसूरि अजमेर पधारे। वहाँ देवसिक प्रतिक्रमण के समय विद्युत् पात हुआ । तो आपने उसे स्तंभित कर दिया। इस पट्टावली के अनुसार आचार्य ने विद्युत को अपने भिक्षा पात्र / काष्ठ पात्र के नीचे दबा दिया और प्रतिक्रमण पूर्ण हो जाने के बाद उसे छोड़ दिया । काष्ठ पर आज भी विद्युत अप्रभावी है । तब विद्युत अधिष्ठातृ देवी ने आचार्य के समक्ष यह प्रतिज्ञा ग्रहण की कि "आचार्य जिनदत्तसूरि का नाम स्मरण करने पर विद्युत्पात न होगा । " किन्तु आगे वरदानों में भी पांचवां इसका उल्लेख है । आज भी राजस्थान में बिजली चमकने पर श्री जिनदत्तसूरि की दुहाई दी जाती है जिससे विद्युत् पात नहीं होता । उ० क्षमा कल्याणजी से सौ वर्ष पूर्व दीक्षित उ० धर्मवर्द्धन जन्म सं० १७०० ) का अति प्रसिद्ध छंद देखिए । बावन वीर किये अपणे वस चौसठ जोगिणि पाय लगाई । व्यंतर खेचर भूचर भूतरू प्रेत पिशाच पलाई | १८५
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy