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________________ लोग समृद्ध हो जाओगे। प्रतिमा-निर्मापित कराकर श्रावक लौट रहे थे, तो मार्ग में नागौर जनपद में विश्राम किया। तत्रविराजित शान्तिसूरि ने नागौर भावकों को कहा कि तुम लोग सिन्धु देश से समागत श्रावकों को जैसे-तैसे भोजन कराओ। सिन्धु श्रावकों ने जिनदत्तसूरि के निर्देश को अधिक महत्त्व नहीं दिया। वे भोजन करने चले गये और पीछे से शान्तिसूरि ने प्रतिमा की अञ्जनशलाका कर दी। ( यद्यपि एक आचार्य के द्वारा ऐसा कपटपूर्ण कार्य आचार्यत्व की गरिमा के प्रतिकूल है।) सिन्धुश्रावकों को सफलता नहीं मिली। जिनदत्तसूरि ने उन्हें दूसरा उपाय बताया कि भटनेर के भगवान् महावीर मन्दिर स्थित मणिभद्र की प्रतिमा प्राप्त करो जिससे तुम्हारा वांछित सिद्ध होगा। श्रावक वर्ग ने आचार्य के निर्देश का पालन किया और वे भटनेर से मणिभद्र की प्रतिमा लेकर लौटे, किन्तु भटनेर निवासियों ने उनका पीछा किया। अतः उन्होंने प्रतिमा को पंच नदी में विसर्जित कर दिया। जब आचार्य को वस्तु स्थिति ज्ञात हुई तब वे पंच नदी से प्रतिमा प्राप्त करने के लिए स्वयं आये और मणिभद्र की स्तुति की। मणिभद्र ने प्रत्यक्ष होकर कहा कि मैं इस स्थान को छोड़कर अब अन्य स्थान पर नहीं जा सकता, किन्तु आप पर प्रसन्न होकर मैं यहीं पर रहता हुआ सान्निध्य प्रदान करूंगा। प्राप्त उल्लेखानुसार मणिभद्र ने आचार्य जिनदत्तसूरि को पूर्व संकेतित सात वरों में प्रथम सिंध देश के प्रति ग्राम में एक श्रावक विशेष समृद्धिशाली और दूसरों के सर्वथा निर्धन न होने का वरदान था। अन्य उल्लेखानुसार तीन अन्य पीर भी आचार्य के भक्त थे। जब वे मरकर देव बने तो आचार्य के निर्देशानुसार वे पंच नदी पर निवास करने लगे। देरावर निवासी सोमराज भी जो कि आचार्य का परमभक्त था, भी स्वर्गवास होने पर आचार्य की आज्ञा से पंच नदी में रहने लगा। पट्टावलियों में उल्लिखित है कि सुलेमान गिरि का अधिष्टायक 'खोडिया' क्षेत्रपाल भी इन पीरों के साथ १८४
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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