SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तो उक्त चौसठ योगिनियों की घटना जिनप्रभसूरि के जीवन-वृत में उल्लिखित की है। जिनदत्तसूरि के सम्बन्ध में प्रथमानुयोग ग्रन्थ-प्राप्ति का उल्लेख भी भिन्न-भिन्न रूप में मिलता है। यह प्रथमानुयोग समवायांगसूत्र का प्रथम अनुयोग है, जिसमें अर्हन्तों का वृत्त वर्णित हैं। उपाध्याय जयसागर के उल्लेखानुसार शासनदेव ने प्रसन्न होकर जिनदत्तसूरि को उज्जयनी नगरी के महाकालप्रसादस्थ शिलापट्ट में गुप्त रूप से आरक्षित प्रथमानुयोग सिद्धान्त ग्रन्थ प्रदान किया। यह ग्रन्थ दशपूर्वधर आचार्य कालकसूरि द्वारा विरचित तथा आचार्य सिद्धसेन दिवाकर पठित था।' उपाध्याय क्षमाकल्याण कृत पट्टावली में प्रन्थप्राप्ति का साधन भिन्न निर्दिष्ट है। उसके अनुसार चित्रकूट के देवगृह के वनस्तम्भ में एक विविध मंत्राम्नाय प्रन्थ था, जिसे जिनदत्तसूरि ने मन्त्रबल से ग्रहण किया। इसी प्रकार उज्जयनी के महाकाल प्रासाद के. स्तम्भ से सिद्धसेन दिवाकर के ग्रन्थ को औषधिप्रयोग से प्राप्त किया।२ गणि सुमति के मतानुसार जिनदत्तसूरि को मन्त्र-ग्रन्थ की प्राप्ति आचार्य हरिसिंह से हुई थी। उक्त प्रमाणों से यह तो निर्विवाद है कि आचार्य जिनदत्तसूरि ने एकाधिक अद्भुत प्रन्थ प्राप्त किये थे, किन्तु वह विद्यागुरु के द्वारा प्राप्त किथे थे, या शासनदेव के द्वारा अथवा मन्त्रबल से यह नहीं कहा जा सकता। ___३. सिन्धुदेश के जैन श्रावकों ने अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए जिनदत्तसूरि से निवेदन किया। तदर्थ जिनदत्त नेनिर्देश दिया कि तुम मकराणा जाओ और अमुक वेला में ३२ अंगुली परिमाण की प्रतिमा बनाकर लाओ, किन्तु मध्यवर्ती मार्ग में कहीं भोजन ग्रहण मत करना। उस प्रतिमा की प्रतिष्ठा से तुम सब । गुरु पारतन्त्रयवृत्ति, सं० १४६० " खरतर गुरु पट्टावली गणघरसार्द्धशतकवृहवृत्ति १८३
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy