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________________ बीज तटक्क भटक्क अटक्क रहे जु खटक्क न खाई। कहै धमसीह लंघे कुण लीह दिये जिनदत्त की एक दुहाई ॥ न पड़े बिजली जसु नामै हो। जिनदत्तसूरि स्तवन सं० १७६८० __ आचार्य जिनदत्तसूरि के हाथी लूणिया नामक एक भक्त श्रावुक था। आचार्य उसे सम्मानित करते तो अन्य श्रावकों को ईर्ष्या होती, किन्तु आचार्य का कथन था कि यह श्रावक भावी काल में संघ के लिए कल्याणकर सिद्ध होगा। उस समय वहाँ कँवलागच्छ का विशेष प्रभाव था किन्तु जब वे खरतरगच्छ का अधिक प्रसार प्रचार देखा तो ईर्ष्या से जलभुन उठे। अतः उन्होंने वहाँ के नवाब को प्रलोभन देकर खरतरगच्छानुयायियों को हानि पहुँचाने का प्रयास किया। वे कहे कि जिनके तिलक धारण किया हो उन्हें आप कँवलागच्छीय सममें और जो तिलक रहित हो उन्हें खरतरगच्छीय समझे। विश्वस्त सूत्रों से हाथीसाह को उक्त तथ्य का संकेत प्राप्त हो गया। हाथीसाह ने नवाब की पत्नी को समझाकर अपनी रक्षा की मांग की। आचार्य के आशीर्वाद से हाथी को सफलता मिली। परवर्ती विद्वानों के अनुसार जिनदत्तसूरि ने उसी समय से प्रतिक्रमण में 'अजितशांति स्तोत्र' पठन का हाथीसाह को आदेश दिया। बोथरा गोत्रवान लोगों को 'जय तीहूअण' और गणधर चौपड़ा गोत्रवान लोगों को 'उपसर्गहर स्तोत्र' पठन का। इसी प्रकार एक बार आचार्य जिनदत्तसूरि का मुल्ताननगर में प्रवेश बड़ी धूमधाम के साथ हुआ तब अम्बड़ व्यंग्य कसा कि यदि आप पाटननगर में इस प्रकार प्रवेश करें तो मैं आपका प्रभाव समदूँगा। आचार्य ने कहा ऐसा ही होगा किन्तु तुम मस्तक पर पोटली लिए हुए/मार ढोते हुए मिलोगे। प्रामानुग्राम विहार करते हुए जिनदत्तसूरि पाटन आये। वहां उनका भव्य नगर प्रवेश हुआ. १८६
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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