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मृतक गौ को जीवित करना, व्याख्यानश्रवणार्थ देवों का आगमन, बूबती नौका को तिराना, कम्बल पर बैठकर नदी पार करना आदि । गणि रामलाल रचित, "दादा गुरुदेव की पूजा” एवं “महाजन वंशमुक्तावली" में तो ऐसी घटनाओं का भरपूर विवरण प्रदत्त है।
एक ही घटना का विद्वानों द्वारा भिन्न-भिन्न ढंग से उल्लेख करना, एक ही घटना का एकाधिक आचार्यों के कतृ त्व में वर्णन होना, स्वयं जिनदत्त के समकालीन साहित्य अथवा निकटवर्ती साहित्य में दो-चार को छोड़कर अन्य प्रसंगों का उल्लेख न रहना इत्यादि कारणों को देखते हुए उन सब प्रसंगों का समीक्षात्मक अध्ययन अपेक्षित है।
उज्जयनी-प्रवास में जिनदत्तसूरि मायाबीज/ह्रींकार का जप कर रहे थे। एक दिन उनका ध्यान विचलित करने के लिए उन्हें छलने के लिए ६४ योगिनियां प्रवचन-सभा में पहुँची। जिनदत्त के निर्देशानुसार श्रावकवर्ग ने उन्हें पट्टों पर बैठवाया। किन्तु आश्चर्य की बात यह थी कि प्रवचन समाप्त हो जाने पर उन्होंने खड़े होने का प्रयास किया, किन्तु वे स्तम्भित हो गयीं, उठ नहीं पायी । अन्त में उन्होंने क्षमा प्रार्थना की कि हम छलने तो आई थीं आप भी को, किन्तु छली गयी स्वयं। हम क्षम्य हैं। जिनदत्त ने उन्हें क्षमा कर दिया। गणधरसार्द्धशतकवृत्ति के आधार पर योगिनियों ने जिनदत्तसूरि को भविष्य में धर्मप्रचार में सहायता करने का वचन दे स्वस्थान लौट गई। किन्तु उपाध्याय क्षमा-कल्याण आदि विद्वानों ने अपनी पट्टावलियों में योगिनियों द्वारा ७ वरदान देने का उल्लेख किया है। साथ ही साथ योगिनियों ने एक बात और कही कि आपके शिष्य भरूअच्छ, दिल्ली, उज्जयनी और अजमेर में हमारे योगिनीपीठ होने के कारण वहां न जाए और यदि जाए तो रात्रि विश्राम न करें।
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