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सर्वप्रथम हम वरदानों की चर्चा करते हैं। सात वरदान निम्न हैं१. खरतरगच्छीय साधु मूर्ख नहीं होगा। २. साध्वियों को स्त्रीधर्म नहीं होगा। ३. साधु-साध्वियों की सर्प से मृत्यु नहीं होगी। ४. खरतरों की वचन-सिद्धि होगी। ५. आपके नाम-ग्रहण से विद्युत्पात नहीं होगा। ६. शाकिनी नहीं चलेगी। ७. खरतर श्रावक धनवान होंगे।
उक्त वरदान केवल जिनदत्तसूरि के जीवनपर्यन्त ही क्रियान्वित होंगे, या बाद में भी, इसकी किसी ने सूचना नहीं दी है। हमारे विचारानुसार इन वरदानों का सम्बन्ध मात्र जिनदत्तसूरि से ही है, पश्चवर्ती परम्परा से नहीं है। क्योंकि वर्तमान काल में उक्त सात वरदानों का प्रभाव नहीं देखा जा रहा है। जबकि जिनदत्तसूरि के समय में इन वरों का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। इन सात वरों में से साध्वियों के स्त्रीधर्म होने के वर को छोड़कर अन्य सभी वरों के प्रभाव होने के प्रमाण मिलते हैं।
सम्भवतः यह भी हो सकता है कि सप्त वरदानों की क्रियमानता के लिए निम्नलिखित सप्त विधानों की क्रियान्विति आवश्यक हो । वे सप्त विधान निम्न हैं
१. पट्टधर पंचनदी साधन करे। २. आचार्य प्रतिदिन १००० सूरिमन्त्र का जाप करे। ३. खरतरश्रावक उभयकाल सप्तस्मरण का पाठ करे। ४. प्रत्येक गृह में २०० क्षिप्रचटी (उपसर्गहर स्तोत्र/नवकार मन्त्र)
माला फेरी जाये। ५. एक माह में २ आचाम्लतप (आयम्बिल) प्रत्येक खरतरघर में
किये जाये। ६. पदारूढ़ साधु एकाशन करे।
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