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________________ न्तता प्रदान करने में भी जिनदत्त का स्थान महत्वपूर्ण है । उनके अद्भुत कार्य और उनका साहित्यिक जीवन न केवल समकालीन बल्कि परवर्ती विद्वत्वर्ग तथा समाज द्वारा स्थान-स्थान पर निरन्तर प्रशंसनीय रहा है । अनेक लेखकों कवियों ने उन पर वहुत-सी स्वतन्त्र रचनाएँ रची हैं । जनसाधारण ने उनके उपकारों से उपकृत एवं श्रद्धाभिभूत होकर भारत के अनेक अंचलों में स्तूप, प्रतिमा एवं चरण-चिह्न निर्मित - प्रतिष्ठापित किये, जो कि दादावाड़ी के नाम जनविश्रुत हैं। उनकी वर्तमान दादाबाड़ियों की सूची अखिल भारतीय खरतरगच्छ महासंघ, दिल्ली ने प्रकाशित की है । से सम्प्रति जिनदत्तसूरि के महनीय व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अनेक कार्य हुए हैं, जिनमें अगरचन्द नाहटा और भँवरलाल नाहटा द्वारा लिखित युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि नामक शोधमूलक प्रन्थ और मुनि कान्तिसागर द्वारा उसी ग्रन्थ की प्रस्तावना विशेष उल्लेखनीय है । आप पर किये गये अन्य रचना कार्यों में धनपतिसिंह भणसाली कृत, श्रीजिनदत्तसूरि जीवनचरित्र, शेरसिंह गौड़वंशी कृत श्री जिनदन्तसूरि चरित्र, शासनप्रभावक श्री जिनदत्तसूरिजी नो जीवनचरित्र और आचार्य जिनहरिसागर सुरि कृत जिनदत्तसूरि पूजा विशेष उल्लेखनीय है । उपाध्याय लब्धिमुनि ने सं० २००५ में जिनदत्तसूरिचरित्र नामक ४६८ श्लोक का ललितकाव्य रचा है। श्रमण भारती प्रकाशन आगरा आदि पत्र संस्थाओं ने आप पर विशेषांक भी प्रकाशित किये हैं । आपके नाम पर अनेक संघों, संस्थाओं का निर्माण भी हुआ, जिनमें जिनदत्तसूरि पुस्तकोद्वार फण्ड, सूरत, जिनदत्तसूरि सेवा संघ, कलकत्ता एवं जिनदत्तसूरिमण्डल, मद्रास का नाम उल्लेखनीय है । जिनदत्तसूरि का नीवन-वृत्त गुर्वावलियों-पट्टावलियों में सविस्तार वर्णित है जिनमें प्रामाणिकता की दृष्टि से गणधर सार्द्धशतक वृहद्वृत्ति आधारभूत हैं । १७३
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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