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उपदेशों से लाखों क्षत्रियों को प्रभावित किया। उन्होंने जैनधर्म स्वीकार किया। ओसवाल जाति जो आज लाखों की संख्या में है, उसी क्षत्रिय-परम्परा की आनुवंशिकता लिये हुए है। ___ आचार्य जिनदत्तसूरि ऐसे राष्ट्रसन्त हुए, जिन्होंने आम जनता के दुःख-दर्दो को गहराई से समझा और उसे दूर करने के लिए भरसक कोशिश की। जनता ने आचार्य की आत्मा में स्वयं की आत्मा का दर्शन किया और उन्हें 'जन-उद्धारक' एवं 'जन-मसीहा' के रूप में स्वीकार किया। जिनदत्तसूरि ने मानवता को जो सम्मान दिया, उसे सच्चाई की राह से जोड़ने का जो प्रयास किया, क्या विश्व का इतिहास उसे भुला पाएगा १ हजारों-लाखों लोग उस आचार्य की पगडण्डी पर चले और उन्होंने जैनत्व के मानवीय धर्म को बड़े गर्व के साथ अपनाया। न केवल उन्होंने अपनाया, वरन् उनकी पीढ़ीदर-पीढ़ी भी इस धर्म की अनुयायी बनी रही है। आज भी ऐसे - लाखों जैन हैं, जिन्हें जैनत्व आचार्य जिनदत्तसूरि के कारण ही पैतृकसम्पत्ति के रूप में मिला हुआ है। जैनत्व के विस्तार के लिए आचार्य जिनदत्तसूरि युग-युग तक धर्म संघ के आदर्श रहेंगे। __ साध्वी संघमित्रा के शब्दों में जिनदत्तसूरि की नई सूझबूझ ने धर्म विस्तार के लिए नये आयाम खोले। सत्य के प्रतिपादन में उनकी नीति विशुद्ध थी। उनके शासनकाल में जैनीकरणका महत्त्वपूर्ण कार्य हुआ। जैन संख्या का विस्तार उनके जीवन की अभूतपूर्व देन है। संख्या वृद्धि सुविहित विधि-मार्ग की नींव को मजबूत करने में परम सहायक सिद्ध हुई। आचार्य जिनदत्तसूरि की इस प्रवृति का अनुकरण समस्त जैन समाज कर पाता, तो जैनों की संख्या सम्भवतः कई करोड़ तक पहुँच जाती।'
अपभूशभाषा और प्राचीन हिन्दी के विकास में एवं उनको जीव
१ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य, पृष्ठ ६२०
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