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________________ क्योंकि इनके द्वारा लिखित उत्तराध्ययन सूत्रवृत्ति की सूचना प्रत्येकबुद्ध 'चरित्र में प्राप्त होती है यच्छिष्याः ● षडुतराध्ययनस दुव्याख्यामशो केन्दुरा । X X X स्वपूर्वज श्रीमदशोकचन्द्र श्री नेमिचन्द्रादिम सूत्रधार | दृष्टोत्तराध्याय विवृत्तिसूत्रानुसार तश्चार्वति संघट्टयः । १ -- समय- संकेत :- प्राप्त प्रमाणों के आधार पर अशोकचन्द्रसूरि का जीवन-काल विक्रमसंवत् ११०० से ११७५ तक का होना चाहिए । जगत्पूज्य आचार्य जिनदत्तसूरि जिनदत्तसूरि का युग खरतरगच्छ के लिए स्वर्ण - युग सिद्ध हुआ था । खरतरगच्छ संघ की इन्होंने सर्वाधिक संवृद्धि की । प्रतिभा, प्रसिद्धि एवं कतृत्व की दृष्टि से जिनदत्तसूरि को न केवल खरतरगच्छ अपितु जैन परम्परा का अद्वितीय आचार्य कहा जाए तो कोई अत्युक्ति न होगी । उसी युग में हेमचन्द्राचार्य, वादिदेवसूरि, मलयगिरि, कवि-चक्रवर्ती श्रीपाल जैसे महाप्रतिभावान् व्यक्ति हुए, किन्तु जिनदत्तसूरि को जितनी जनप्रतिष्ठा प्राप्त हुई, उतनी सम्भवतः अन्य किसी को प्राप्त नहीं हो पायी थी । जैनसंघ के पुनर्वर्धन एवं पुनरोद्धार हेतु जिनदत्तसूरि का श्रम अनुपमेय रहा । जैन समाज में दादा गुरुदेव के नाम से विश्रुत युगप्रधान आचार्य जिनदत्तसूरि ने जैनधर्म के व्यापक विस्तार की दृष्टि से बहुत बड़ा कार्य किया । लाखों अजैनों को जैनधर्म में प्रवृत्त किया । क्षत्रिय जाति का जैनधर्म के साथ प्रारम्भ से ही बड़ा निकटतापूर्ण सम्बन्ध रहा, किन्तु आगे चलकर परिस्थितिवश वैसा नहीं रह सका । शताब्दियों बाद आचार्य जिनदत्तसूरि ने अपने त्याग तपोमय आदर्शों और १ प्रत्येक बुद्धचरित्र, प्रशस्ति, पृ० ३० १७१
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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