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का उपदेश सुनकर नागपुर ( नागोर) में भगवान् नेमिनाथ का भव्य मन्दिर बनवाया था । '
साहित्य :- पद्मानन्द ने 'वैराग्यशतक' नामक काव्य भी लिखा था जिसमें शार्दूलविक्रीडित छन्द में १०३ पद्य हैं । इसमें वैराग्यमूलक बातें बताई गई हैं और सच्चे योगी तथा कामुक लोगों का स्वरूप प्रतिपादित किया गया है। इसकी चौथी आवृत्ति 'काव्यमाला' गुच्छक ७ में प्रकाशित हुई हैं ।
समय
य-संकेत :- पद्मानन्द का काल विक्रम की बारहवीं शदी है।
सम्मान्य आचार्य अशोकचन्द्रसूरि :
अशोकचन्द्रसूरि एक प्रभावशाली आचार्य थे । तत्कालीन अन्य आचार्य इन्हें विशेष आदर देते थे और गच्छ में होनेवाले विशिष्ट कार्यों को इन्हीं के कर-कमलों से करवाते थे ।
जीवन-वृत्तः - अशोकचन्द्रसूरि के सम्बन्ध में अन्य जानकारी मात्र इतनी ही उपलब्ध हो सकी है कि इनके गुरु का नाम गणिसहदेव था और प्रगुरु का नाम आचार्य जिनेश्वरसूरि था । आचार्य जिनचन्द्रसूरि ने इन्हें विशेष विद्याध्ययन करवाया था । प्रसन्नचन्द्र, हरिसिंह और देवभद्र जैसे महामुनियों को अशोकचन्द्रसूरि ने ही आचार्य पदारूढ़ किया था। मुनि सोमचन्द्र ( आचार्य जिनदत्तसुरि ) आदि की वृहद - दीक्षा भी इन्होंने ही करवाई थी। इनके शिष्यों में एक शिष्य का नाम उदयचन्द्र था, जिसने वि० सं० १९५४ में ओघनियुक्ति की रचना की थी ।
साहित्य :- अशोकचन्द्रसूरि द्वारा लिखित साहित्य अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। जबकि इन्होंने साहित्य-सर्जन निश्चित किया था ।
१ वैराग्य शतक ( १०२ )
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