________________
यस्य शिरसि स्वहस्तपद्मं ददाति स जडोऽपि रामदेवगणिरिव वनकयलावर्तीर्ण भारती कोडत्यन्तदुर्बोध-सूक्ष्मार्थ सारप्रकरण वृत्ति विरचयति । "
इससे यह सिद्ध होता कि गणि रामदेव आचार्य जिनवल्लभसूरि के एक विद्वान शिष्य थे । रामदेव के साहित्य का अवलोकन करने से विदित होता है कि इन्होंने प्राकृत भाषा एवं सिद्धान्तों का गहन अध्ययन किया था । कर्म - सिद्धान्त का इन्हें विशेष ज्ञान था । इनके जन्म दीक्षा काल आदि का कोई प्रमाण प्राप्त नहीं है । ये बारहवीं शदी में हुए । महोपाध्याय विनयसागर के उल्लेखानुसार इनकी दीक्षा ११३०-६७ के मध्य हुई होगी । '
साहित्य :- रामदेव के निम्न ग्रन्थ उपलब्ध हो चुके हैं(१) सत्तरी टिप्पन ( २ ) सार्द्धशतक टिप्पन (३) षडशीतिटिप्पन । उक्त तीनों प्रन्थों का रचना - काल एवं रचना स्थल अज्ञात है ।
समय- संकेत :- ये बारहवीं शदी में हुए थे ।
जिनशासन-सेवी पद्मानन्द :
पद्मानन्द धर्मनिष्ठ, दानवीर एवं कवि थे। जिनमन्दिरों के निर्माण में इन्होंने अपना तन, मन, धन समर्पित कर दिया। संस्कृत का इन्हें अच्छा ज्ञान था । ये एक विद्वान श्रावक थे ।
१
जीवन-वृत्त :- इनके कि इनके पिता का नाम पिता और पुत्र दोनों ही आचार्य जिनवल्लभसूरि के परम भक्त थे एवं खरतरगच्छ परम्परा से सम्बद्ध थे ।
'वैराग्यशतक' के अनुसार पद्मानन्द ने आचार्य जिनवल्लभसूरि
-१ बल्लभ भारती, पृष्ठ १४३
सम्बन्ध में मात्र इतना ही ज्ञात हो पाया है धनदेव था जो नागौर के निवासी थे ।
१६६