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जीवन-वृत्त :- युगप्रधानाचार्य गुर्वावली' के अनुसार जिनदत्त का जन्म गुजरात प्रान्तान्तर्गत धवलका (घोलका) ग्राम में हुआ था । इनके पिता का नाम वालिग था, जो हुम्बड़ज्ञातीय श्रेष्ठि थे और माता का नाम बाहड़देवी था। इनका जन्म समय विक्रम सं० ११३२ है, किन्तु यह तथ्य अनवगत है कि उस वर्ष की किस तिथि को उनका जन्म हुआ था और उनका जन्म नाम क्या था ।
उपाध्याय धर्मदेव की आज्ञानुवर्तिनी विदुषी साध्वियों के सत्सम्पर्क से उदीयमान वाछिगपुत्र के अन्तस में श्रमण-धर्म के प्रति आकर्षण पैदा हुआ था । साध्वियों का धवलका में चातुर्मास था और वागि तथा बाहड़देवी अपने पुत्र को लेकर उनके पास वन्दन-प्रवचनश्रवणार्थ आया करते थे । एक दिन साध्वियों ने उस दम्पत्ति को समझाया कि यह बालक भविष्य में बहुमुखी प्रतिभा का धनी होगा और इसके द्वारा जिनशासन की विशिष्ट प्रभावना होने की संभावना है । अतः इसे हमारे गुरु महाराज को सौंप दो । दम्पत्ति ने प्रधान साध्वी के वचनों को स्वीकार कर लिया । अन्त में विक्रम संवत् १९४१ में नौ वर्ष की अल्पायु में उपाध्याय धर्मदेव जो गणधर सार्द्ध शतक वृहद्वृत्ति के अनुसार जिनेश्वरसूरि के शिष्य थे, ने इस बालक को दीक्षित किया और उसका प्राथमिक अध्ययन का कार्यभार गणि सर्वदेव को दिया । दीक्षा के समय वे सोमचन्द्र नाम से अभिहित हुए । यद्यपि धनपतसिंह भणसाली लिखित जिनदत्तसूरि चरित्र में इनका दीक्षा-नाम प्रबोधचन्द्र उल्लिखित है, किन्तु प्रबोधचन्द्र नाम को सिद्ध करनेवाले अन्य साक्ष्य अनुपलब्ध हैं । विविध पट्टावलियों में सोमचन्द्र नाम ही निर्दिष्ट है ।
मुनि सोमचन्द्र की वृहद्दीक्षा आचार्य अशोकचन्द्रसूरि के करसे हुई ।
* युगप्रधानाचार्यगुर्वावली, खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली, पृष्ठ १६ से २०
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